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________________ ७१० ] तिलोयपणाती [ गाथा । २६५४-२६५९ :-न्य, शून्य, शून्य, दो, नौ और तीन, इस अंक क्रमसे उत्पन्न हुई संस्थाको पातकीपण्डके विस्तारमेंसे कम करके शेषमें पाठका भाग देनेपर रक्षार-पर्वतोंका विस्तार ज्ञात होता RAMNI... आमा सिम हार पया :-(४०००००-(११३६५४+ १५००+११६५०+२१५५५८+६४००) -१००० योजन । विभंग विस्तारबउ - लक्खाको सोहसु, अंबर-भ-पंच-पटु-णवय-तियं । सेसं छक्क • विहत्त, विभंग • सरियाण विश्यारं ॥२६५४।। ३६८५०० । मर्ष:-शून्य, शून्य, पाच, आठ, नो और तीन, इस अंक क्रमसे उत्पन्न हुई संख्याको धातकीखण्डने विस्तारमेंसे कम करके शेष में छड़का भाग देनेपर विभंगदियोंका ( ६६४१ यो०) विस्तार प्राप्त होता है ।।२६५४॥ एषा :-- [ ४०००००-(८००+१५३६५४ + २१५७५८+ १९६८८+६४..)६०६६४१६, यो प्रत्येक विमंगका विस्तार है। देवारण्यका विस्तारसोहसु चउ-लक्खादो, तु-एषक-तिय-पटु-पट-तियमाणं । सेसं दु - हिरे होवि हु, वेधारमान वित्यारं ॥२६५५।। ३८६३१२ । अपं:- दो, एक, तीन. माठ, आठ और तीन, इस अंक ऋमसे उत्पन्न हुई । ३८८३१२) संख्याको पातकीखण्ड के विस्तार चार लाख मेंसे घटाकर शेष में दो का भाग देभेपर देवारम्य वनोंका विस्तार प्राप्त होता है 11२६५५।। अषा:-{ ४००००० -( १५३६५४+ १५०० + २१५७५८ + ६४०० + ८०००+२ -१९४१५६ योजन प्रत्येक देवारण्यका विस्तार । ___ भद्रशालवनका विस्तारअवय चज-लपखादो, दो-चाउ-दु-च-अट्ट-एक-यंककमे । जोयनया अबसेसं, दो भजिये भहसाल - वनं ॥२६५६।। १८४२४२ ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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