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________________ महानुिया [ ७०९ :- देवारम्य और भूतारण्य मेंसे प्रत्येकका विस्तार श्रावनसी चचालीस ( ५८४४ ) गाया : २६५०-२६५३ ) योजन प्रमाण कहा गया है ।। २६ श्री सुविधाट जी हा विजयादिकों का विस्तार निकालने का विधान - विजया दक्खाराणं, विभंगाई देवरण- भट्टसालवणं । यि गिय-फलेन गुणिया कादव्वा मेरु-फल-मुता ।। २६५० ॥ तच्चेय दोब' वासे, सोहिय एवम्मि होदि मं सेसं । णिय-जिय-संखा हरिवं, नियगिय वासाणि जायते ।। २६५१|| 6 वर्ग:- विजय वक्षार, विभंगनदी, देवास्थ्य और भद्रशालवनको [ इसे होन ] अपनेअपने फलसे गुणा करके भेरुके फल से युक्त करनेपर जो संख्या उत्पन्न हो उसे इस द्वीपके विस्तारमेंसे कम करके शेषमें अपनी-अपनी संख्याका भाग देनेवर अपना-अपना विस्तार प्रमाण प्रकट होता है ।। २६५०-२६५१ ॥ - सोसु विस्थारावो, उ-तिय-छक्क बाउ-दु-पंक-कमे । संसं सोलस भजिदं विजयं परि होइ विस्मारं ।। २६५२ ।। २४६३४६ । अर्थ:-बह, चार, तीन छह चार और दो इस अंक क्रमसे उत्पन्न हुई संख्याको धातकी खण्ड के विस्तारमेंसे कम करके शेष में सोलहका भाग देनेपर प्रत्येक विजय (क्षेत्र) का विस्तार जात होता है ।। २६५२ ।। विजय विस्तार यथा : - क्षार यो० ८००० + विभंग १५०० देवारम्य ११६८८ + भदशाल २१५७५८ + मेरु ६४०० यो० २४६३४६ यो० । ( ४००००० – २४६३४६ | ÷ १६८६६०३३ प्रो० । - बक्षार विस्तार विरथारावो सोह, मंबर- नम-गय-वोणि- नवय-तियं । हिदे, वक्चार णगाण विस्थारो ।। २६५३ ॥ अवसे ३६२००० । १. क. ज. स. उ, दोषं वासो । -
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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