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तिलोयपणाती
[ गापा : २६४५-२६४६ एवेसु पत्तक, मंदरसेसाण घरणि - पट्टम्मि । बाउ-गाउदि - सय - पमाणा, जोयणया होदि विषसंभो ॥२६४५।।
१४०० 1 म:-इनमें से प्रत्येक मेरुका विस्तार पृषिवीके पृष्ठ-मागएर चौरान सो ( ६४०० ) ___योजन प्रमाण है ॥२६४५॥ iri:.. a sta
एक जोय - लक्वं, सल-सहस्सा य प्रह-सय-बुचा । एषहत्तरिया भणिदा, विश्वंभो भहसालस्स ॥२६४६॥
१०७८७६ । धर्म:-भद्रशालका विस्तार एक लाख सात हजार माहसो उन्यासो (१०७८७१) ___ योजन प्रमाण कहा गया है ॥२६४६॥
छन्गववि-जोयण-सया, ति'-उत्सरा-अडहिया यति-फलानो। . सब्वाणं 'विजयावं, पत्तेक होवि विभो ॥२६४७॥
६६.३ ।।। म :-सब विजयों ( क्षेत्रों में से प्रत्येक क्षेत्रका विस्तार रुपानदंसौ तीन योजन और पाठसे माजित तीन भाग ( १६०३३ ) प्रमाण है ॥२६४७॥
.. जोयण-सहस्समेरक, वक्खार - गिरीण होवि वित्यारो। अबढाइज्ज - सयाणि, विभंग - सरियाण' विखंभो ॥२६४८॥
१००० । २५० 1 मर्ग :-वक्षारपर्वतोंका विस्तार एक हजार योजन प्रमाण है और विभेगनदियोंका विस्तार ___ अकाईसौ ( २५० ) योजन प्रमाण है ।।२६४८॥
अढाषण - सवाचि, चउवाल - जुदाणि जोयणा रुवं । कहिदं देवारपणे, मूवार वि पत्तकं ॥२६४६॥
५८४४ ।
१.द.व. य. तिउत्तराया हिदा। २.८.. जय. उ. समबास।
.प.सरिया,
क.अ.५.
घ. सरिया