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७०४ । का सिलपिणती ?
या : ३३ मंबरगिरिव - उत्तर - बक्सिम - भागेसु भइसालाणं ।
जं विक्वंभ - पमाणं, जबएसो तस्त उछिन्यो ।।२६२६।।
प्रबं:-मन्दरपर्वतोंके उत्तर-दक्षिण भागोंमें भद्रशालवनोंका जितना विस्तार है, उसके प्रमाणका उपदेश नष्ट हो गया है ।।२६२६।। ।
बारस-सय • पावोस, अद्वाप्तीदो - बिहत्त - उपसोडी । जोयणया विक्खंभो एस्केरके भहसाल - वणे ।।२६३०।।
१२२५ । । प्रपं:-प्रत्येक भद्रशालकनका विस्तार बारहसौ पच्चीस योजन मोर मठासीसे विभक्त उन्यासी भाग ( १२२५१ योजन ) प्रमाण है ॥२६३० ।।
गमदन्तोंका वर्णनसत्त-दु-दु-चक पंचत्तिय - प्रकारणं कमेण जोयगया । अन्भंतरभाष्ट्रिय - गयरतावं 'मउन्हावं ॥२६३१॥
पर्ष :-सभ्यन्सरमागमें स्पिप्त चारों गजवन्तोंकी लम्बाई सात, दो, दो, ग्रह, पाच मोर तीन इस अंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने ( ३५६२२७) पोजन प्रमाण है ॥२६३१।।
नव-पम-पो गव-चप्पण, ओयणया उभय-मेलाहिरए । पर - गपरत - जगावं, बीहत होवि पतकं ॥२६३२॥
५६६२५६ । वर्ष :- उभय मेकओंके बाह्यमागमें चारों गजदन्त पर्वतों से प्रत्येक (गजवन्त) की लम्बाई नो, पांच, दो, नो, छह और पांच, इस अंक क्रमसे जो संख्या उत्पन्न हो उतने ( ५६९२५९) योजन प्रमाश है।॥२१३२।।
कुरुक्षेत्रोंका धनु:मव-जोयम-लक्खानि, पणवीस-सहस्स-चउ-सयाणि पि। छासोयो भणपुर, दो - कुरवे पापसिं ॥२६३३॥
२५४०६।
t... , पउम्पारणं ।