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________________ गापा ! २६१८-२६२० ] उस्मो महाहियारो [ ७.१ प:-नानाप्रकारके उत्तम रनोंके परिणामस्वरूप वह प्रत्येक पर्वत एक हजार (१.०० योजन प्रमाण अवगाड (नींव } सहित पोरासी हजार ( २४...) योजन ऊंचा है ॥२६१७) मेहका विस्तारmins मेह-सुबहस य स प. सहस्साशि लोडमरणा होति । घउ • गउदि - सयाई पि य, परगीपट्टम्मिए रुदा ॥२६१८।। १०... | Exc.। प्रचं!-मेरका विस्तार तलभागमें दस हजार ( १०००० ) योजन और पृथियोपृष्ठपर नी हजार चार सी (४०० ) योजन प्रमाण है ॥२६१८|| जोयण-सहस्समेषक, विक्शंभो होदि तस्म सिहरम्मि । भूमोघ मुहं सोहिय, उदय - हिने महानु हाणि च ॥२६१६॥ :-उस मेरुका विस्तार शिखरसर एक हजार योजन प्रमाण है । भूमिसे मुछ घटा फर शेषमें ऊंचाईका भाग देनेपर भूमिको अपेक्षा हानि और मुखकी अपेक्षा वृद्धिका प्रमाण प्राप्त होता है ॥२६१६॥ बिशेवा:-नीवमें - (भूमि १०००.--१४०० मुल ):.१००० यो अवगाह=1 योजन हानि-पय । भूमिसे ऊपर-(भूमि-१४०० – १००० मुख) : ६०. ॐ = । योजन हानि-पय । तक्खय-वसि-पमारणं, छइस भागं सहस्स • गामि । भूमीवो उवार पि य, एक्कं बस - स्यमवहरिवं ॥२६२०॥ प:-वह भय वृद्धिका प्रमाण एक हजार पोजन प्रमाण प्रबगाहमें योगनके दस । भागों मेंसे छह भाग अर्थात् छह बटे दस () भाग पोर पृथिवीके पर दस रूपोंसे भाजित एक भाग ( यो) प्रमाण है ॥२६२०1।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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