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तिलोयपणती
[ गाया : २६१३-२६१७ पदह और पुण्डरोकद्रहसे निर्गत नदियोंका पर्वतके ऊपर गमनका प्रभारण
धावरस बोके, खल्लय-हिमवंत-सिहरि-माझ गया ।
पउमवह पुरोए, पुष्ववर - दिसाए एक एक गई ॥२६१३।।
मय:-पातकोखण्ड दोपमें क्षुद्रहिमवान् और शिखरीपर्वतके मध्यगत पनद्रह पौर पुण्डरीकद्रहको पूर्व एवं पश्चिम दिगासे एक-एक नदी निकली है ।।२६१३॥
उणवीस सहस्साणि तिणि सया णवय-सहिय-जोयणया । गंतूण गिरिदुर, दक्षिण - उसर - विसे बलइ ॥२६१४॥
:--प्रत्येक नदी उन्नीस हजार तीनसो नो (१९३०) योजन पर्वतके ऊपर जाकर __ यथायोग्य दक्षिण एवं उत्तर दिशाको और मुड़ जाती है ।।२६१४॥
__ . "मदर मतोंको शरीरमा मंबर - खामो सेसो, हवेवि तस्सि बिवह - परिसम्मि ।
किंचि विसेसो पेटुषि, तस्स सरुवं पल्वेमो ॥२६१५॥
पर्ष :- उस द्वीपके विदेहक्षेत्रमें किञ्चित् विशेषता लिए इए जो मन्दर नामक पर्वत स्थित __ है उसका स्वरूप कहता हूँ ॥२६१५॥
‘तद्दीवे पुश्वायर - विवेह • बस्साण होवि बहुमम्झे ।
पुरुष' - पष्मिद - हबो, एमकेक्को मंदरो' सेतो ॥२६१६।।
बम':-उस द्वीपमें पूर्व और अपर विवहक्षेत्रोंके बहुमध्यभागमें पूर्वोक्त स्वरूपसे संयुक्त एक-एक मन्दर पर्वत स्थित है ।।२६१६॥
मेवपर्वतोंका अरगाह एवं केवाईजोपन • सहस्स - गाढा, चुलसौदि-सहस्स-गोयणच्छेहा । है सेला पसेका बर - रयण - विमप्प - परिणामा ॥२६१७।।
१..। २४०००। १.प. अ. क, व . उ. पुष्वं परिणव। २. .. . क. प. ३, मंदिरा