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गाथा : २६०५-२६०६] पउत्वो महाहियारो
[ ६५ विका :-मध्यम परिधिका वास्तविक प्रमाण लाब)-१०-८४६०४६ योजन, ३ कोस, ११५३ धनुष एवं साधिक २० अंगुल है। इसलिए गापामें किञ्चित् कम कहा गया है।
बाय परिविका प्रमाणएक्क-छ-णव-गभ-एक्का, एक्क-चउमका कमेण अंकागि । जोयणया किंजूषा, सद्दीवे बाहिरो परिही ॥२६.५॥
४११०६६। प्रयं-घातको खण्डद्वीपको बाह्म-परिधिका प्रमाण एक, छह, नौ, शून्य, एक, एक और पार इस अंक क्रमसे जो संख्या बनती है उतने (४११०९५१ ) योजनसे कुछ कम है ॥२६०५॥
विशेषापं :-बाह्य परिधिका बास्तविक प्रमाण = 1( १३००००० x १०४११०६६० योजन, ३ कोस. १६६५ धनुष और हाथ है लिगाके छ कम पहा ] गया है।
भरतादि सब क्षेत्रोंका सम्मिलित विस्तारआदिम-मरिझम बाहिर-परिहि पमाणेसु सेल-रस-खिदि । सोहिय संसं वास • समासो सम्वाण विमया ॥२६०६॥
१४०२२६६ । । । २६६७२०७। । ३६३२११८१।
पर्व:-आदि, मध्य मौर बाह्य परिधिक प्रमाण से पर्वतरुद्ध ( भूमि ) क्षेत्र कम कर देनेपर शेष प्रमाण सब क्षेत्रोंके सम्मिलित विस्तारका है ।।२६०६।।
विषा:-गाथा २६०. में धातको खण्डद्वीपके पर्वतद्ध क्षेत्रका प्रमाण १७६८४२११ योजन कहा गया है । इसे धातकी खण्डको अभ्यन्तर, मध्य और बाह्य परिधियोंमेसे घटा देनेपर दोनों मेरु सम्बन्धी भरत मादि चौदह क्षेत्रोंसे मवरुद्ध क्षेत्र प्राप्त होता है । यथा
अम्य० परिधि-१५८११३६ यो० - १७८८४२२ - १४०२२६६यो । मध्य परिधि -२८४६०५० यो०-१७८८४२.५८२६६७२०७४यो । बाघ परिधि -४११०६६१ यो० - १८:४२,२ =३६३२११७यो।