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________________ ६९४ ] तिलोयपण्णत्ती विवक्षित सूचीकी परिधि प्राप्त करनेका विधान - शार्थे ir आचार्य श्री सागर की प्रादिम-मज्झिम- बाहिर-सूई वग्गा वसेहि संगुणिवा । तस्स य मूला इच्छि सूईए होदि सा परिही ॥२६०२॥ :-मादि, मध्य और बाह्य-सूचीके वर्मको दससे गुणा करके उसका वर्गमूल निकालनेपर इच्छित सूचीको परिधिका प्रमाण आता है ।। २६०२ ।। धातकीखण्डकी अभ्यन्तर परिधिका प्रमाण पारस लक्खाई, इगिसीबि सहस्स ओयक्का सयं । उणवाल बुवा धावदसंडे अभंतरे परिही ॥२६०३ ॥ - - १४८११३६ । अर्थ :- धातकीखण्डद्वयको अभ्यन्तर परिधिका प्रमाण पन्द्रह लाख इक्यासी हजार एक सौ उनतालीस ( १५८११३९ ) योजन है ।। २६०३॥ [ गाया : २६०२-२६०४ √ [ ५ लाख ) " × १० विशेवार्थ :- मभ्यन्तर परिधिका वास्तविक प्रमाण १४८११३८ योजन, ३ कोस, ६४० धनुष, १ रिक्कू, १ वितस्त मोर कुछ कम ५ अंगुल प्राप्त होता है । किन्तु गाथा में यह प्रमाण मात्र १५८११३६ योजन कहा है । मध्यम परिधिका प्रमाण - अट्ठावीसं लक्खा, छावाल सहस्स जोयणा पन्जा' । किचूना णावव्या मक्किम परिही य धावई ।। २६०४ ॥ १.व.म.पा सं -- · २८४६०५० । अ :- घातकी लण्ड द्वीपको मध्यम परिक्षिका प्रमारण बट्टाईस लाब छपालीस हजार पचास ( २८४६०५० ) योजनसे कुछ कम जानना चाहिए ।। २६०४ ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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