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________________ गाया : २६००-२६०१ । त्यो महाहियारो धातकीखण्ड में पर्वतरुद्ध क्षेत्रका क्षेत्रफल - क पाकि कमे । बुग सह सर्व उणवीस हिवा दु कला, माणं गिरिव वसुहाए ॥ २६०० ॥ - १७८८४२ । ३ । म :- दो, चार, आठ आठ, सात और एक, इस अंक क्रमसे जो संख्या निर्मित हो उतने योजन और उससे भाजित दो भाग अधिक ( १७६८४२२२ + २००० १७८८४२१५योजन ) धातकीखण्ड में पर्वतरुद्ध क्षेत्रका प्रमाण है ।। २६०० ।। आदिम, मध्यम भोर वाह्य सूची निकालनेका विधान -- लवयादीगं हवं, बुग-तिग-उ-संगुणं ति लक्खूर्ण कमसो प्राविममभिम बाहिर सूई हवे तार्थ ।।२६०१ ।। - - - [ ६६३ अर्थ :- लवणसमुद्धादिकके विस्तारको दो, तीन और चार गुणाकर प्राप्त गुणनफल में से तीन लाख कम करनेपर क्रमशः उनकी आदि, मध्य भीर मन्तिम सूचीका प्रमाण प्राप्त होता है ।। २६०१ ।। विशेषार्थ :- लवणसमुद्रादिकमेंसे जिस द्वीप या समुद्रका सूचीव्यास ज्ञात करना हो उसके विस्तार ( वलय व्यास या इन्द्रव्यास ) को दो से गुणितकर लब्धराशिमेंसे तीन लाख घटा देनेपर अभ्यन्तर सूत्रीव्यासका प्रमाण प्राप्त होता है । विस्तार प्रमाणको सीनसे गुणितकर, तीन लाख वटा देनेवर मध्यम सूचो व्यासका प्रमाण प्राप्त होता है और विस्तारको चारसे गुणितकर तीन लाख घटा देनेपर बाह्य सूचीष्यासका प्रमाण प्राप्त होता है। स्था- चार लाख विस्तारवाले घालकीण्डके तीनों सूची व्यासोंका प्रमाण ( ४ लाख × २ - ८ लाख ) – ३ लाख = ५ लाख घातकीखण्डका अभ्य० सूची व्यास । ( ४ लाख ४३ - १२ लाख ) - ३ लाख = ६ लाख धातकी खण्डका मध्यम सूची व्यास । ( ४ लाख ४४ - १६ लाख ) – ३ लाख = १३ लाख घातकी खण्डका बाह्य सूची व्यास ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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