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गावा : १५६-१६१] चउत्यों महाहियारो
कंधण - पामारतय - परियरिओ गोउरेहि संपतो। पर-बल-गील-विपदुम-मरणय- देवलिय - परिणामो ॥१५॥ 'संबंत - रयम • बामो, गामा-कुसुमोपहार-कयसोहो । गोसीस - मलयचंदन • कालागर - धूव • गंधहो ।।१५७॥ बर-मन्ज-कवाड-जदो, बहावह-शाहि सोहियो बिउली । पर • मालभ - सहितो, शिनिय - गेहो णिएबमाणो ॥१५॥
म:- स्वर्णमय तीन प्राकारोंसे वेलित, गोपुरोंसे संयुक्त, उत्तम वज, नील, विद्म, मरकत पौर बंड्य-मरिगमोसे निर्मित, सटकती हुई रस्नमालाओंसे युक्त, नाना प्रकारके फूलोंके उपहारसे शोभायमान, गोशीर्ष, मसयचन्दम, कालागर और भूपको गन्धसे ज्याप्त; उत्कृष्ट वज़कपाटोंसे संयुक्त बहुतप्रकारके द्वारोंसे सुशोभित, विशाल और उसम मानस्तम्भों सहित वह जिनेन्दभवन अनुपम है ।।१५६-१५८
भिगार - सस दप्पण-चामर घंटावडत - पहवोटिं। पूजा - दम्वेहि तदो, विचित्त - घर - यस्य - सोहिल्सो ॥१५६।। पुणाय - गाय - चंपय - असोय-बसलावि-हस्स-पुण्यहि । उम्भाहि सोहवि, विविहि जिनिय • पासाबो ॥१६॥
पर्ष-वह जिनेन्द्र-प्रासाद झारी, फलश, दर्पण, चामर, घंटा और पानपत्र (पत्र) इत्यादिसे, पूजाधव्योसे, पिचित्र एवं उत्तम वस्त्रोंसे सुशोभित तथा पुनाग, नाग, पम्पक, असोक और बकुलादिक वृक्षोसे परिपूर्ण विविध उद्यानोंसे शोभायमान है ।।१५६-१६०।।
सच्छ - जल - पूरि।हिं, 'कमलप्पलसंड - मंडलपराहि । पोक्सरणीहि रम्मो, मणिमय - सोवाग' 'मालाहि ।।१६।।
१. प. संनुसा। २...ब. प. उ. विम्युम । ३. क. उ, कंबट। . म. कामाक ......क.अ. य. पोहि, उ. बरबसेहि। .क. ३. कमल-पस । . द.क.प.प. उ. भरण परा'। . .ब.क ज म. 1, मोहाए । ९ द.क. ब. स ४ मासाई ।