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एक कोस प्रमाण है ।
तिलोयपण्णत्तो
[ गाथा : १५३ - १५५
विशेषा:- प्रत्येक कूटको ऊंचाई ६ योजन १ कोस और मूल विस्तार भी ६ योजन
पाराकडे
अर्थ :- प्रत्येक कूटका विस्तार शिखर पर इससे अटा अर्थात् सौन योजन और आधा कोस है । मूल और शिखरके विस्तारको मिलाकर पाधा करने पर जो प्रमाण प्राप्त हो उतना उक्त प्रत्येक कूटके मध्यका विस्तार है ।।१५३।।
विषय:
तस्सद्धं बिश्थारो पक्ष एकं होदि कूट- सिहरहि' ।
मूल- सिहराग इथं मेलिय बसिवन्हि सम्झस्स ।। १५३३।
जो ३ । को। जो ४ को
ऊपर विस्तार
-प्रत्येक स्टको ऊंचाई देई पाजन और विस्तार भी ६ योजन है। शिखरके योजन है । कूटका मध्य विस्तार ( १ + १÷२ अर्थात् योजन अथवा ४ यो० और २ या ' कोस है ।
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१.
मयाय अर्या
कूटस्थित जिनभवनका वर्णन
आदिम कूडे चेदि, विनिश् भवणं विचिस वर - कंचन रयणमयं तोरण जुल
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ब... उ सिहराणि ।
४० क. ज. प. उ.
थमालं । विमाणं च ॥ १५४ ॥
अर्थः- प्रथम कूटपर विचित्र ध्वजा-समूहों से शोभायमान जिनेन्द्रभवन तथा उत्तम स्वर्ण और रहनोंसे निर्मित तोरणोंसे युक्त विमान स्थित हैं ।। १५४ । ।
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"दोहतमेवक- कोसो, विसंभो होदि कोस-दस-मेत्तं" । गाउय-ति-चरण भागो, जिण निकेवल्स || १५५ ॥
उच्छे
को १ । ३ । ३ ।
अर्थ :- जिनभवनको लम्बाई एक कोस, चौड़ाई आधा कोस और ऊँचाई गव्यूतिके तीन चौथाई भाग (कोस ) प्रमाण है ।। १४५ ।।
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२. प. कुछ ॥ ३. द. वि ४.प.व. क. ज. उ. ६.उ.स