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________________ ४४ ] एक कोस प्रमाण है । तिलोयपण्णत्तो [ गाथा : १५३ - १५५ विशेषा:- प्रत्येक कूटको ऊंचाई ६ योजन १ कोस और मूल विस्तार भी ६ योजन पाराकडे अर्थ :- प्रत्येक कूटका विस्तार शिखर पर इससे अटा अर्थात् सौन योजन और आधा कोस है । मूल और शिखरके विस्तारको मिलाकर पाधा करने पर जो प्रमाण प्राप्त हो उतना उक्त प्रत्येक कूटके मध्यका विस्तार है ।।१५३।। विषय: तस्सद्धं बिश्थारो पक्ष एकं होदि कूट- सिहरहि' । मूल- सिहराग इथं मेलिय बसिवन्हि सम्झस्स ।। १५३३। जो ३ । को। जो ४ को ऊपर विस्तार -प्रत्येक स्टको ऊंचाई देई पाजन और विस्तार भी ६ योजन है। शिखरके योजन है । कूटका मध्य विस्तार ( १ + १÷२ अर्थात् योजन अथवा ४ यो० और २ या ' कोस है । + -x77 १. मयाय अर्या कूटस्थित जिनभवनका वर्णन आदिम कूडे चेदि, विनिश् भवणं विचिस वर - कंचन रयणमयं तोरण जुल 2 ब... उ सिहराणि । ४० क. ज. प. उ. थमालं । विमाणं च ॥ १५४ ॥ अर्थः- प्रथम कूटपर विचित्र ध्वजा-समूहों से शोभायमान जिनेन्द्रभवन तथा उत्तम स्वर्ण और रहनोंसे निर्मित तोरणोंसे युक्त विमान स्थित हैं ।। १५४ । । - "दोहतमेवक- कोसो, विसंभो होदि कोस-दस-मेत्तं" । गाउय-ति-चरण भागो, जिण निकेवल्स || १५५ ॥ उच्छे को १ । ३ । ३ । अर्थ :- जिनभवनको लम्बाई एक कोस, चौड़ाई आधा कोस और ऊँचाई गव्यूतिके तीन चौथाई भाग (कोस ) प्रमाण है ।। १४५ ।। - -- २. प. कुछ ॥ ३. द. वि ४.प.व. क. ज. उ. ६.उ.स
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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