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________________ ६८५ ] तिलोपती धातकीखण्ड में मेरु पर्वतों का विन्यास दोन्हं इसुगाराणं विच्वाले होंति ते दुषे विजया । गिभाद्वारा एक्केक्का ते रात छ -- ओवा की चक्कद्ध · अर्थ :- दोनों इष्वाकार एवंतोंके मध्य में वे दो क्षेत्र हैं । प्रचक्र प्राकार सदृश उन दोनों क्षेत्रों में एक-एक मेरु पर्वत है ।। २४८१॥ पर्वत तालाब श्रादिका प्रमाण खण्ड में हैं ।। २५६२ ॥ सेस - सरोवर-सरिया, विजया कुंडा य जेतिया होति । तेचिय डुगुण जंबूदरी - मेवगिरी ॥२५६१ ॥ - :- जम्बूद्वीपमें जितने पर्यंत, तालाब, नदियां, क्षेत्र और कुण्ड हैं उनसे पूने घातकी - [ गामा : २५०१-२५६५ वे सब पर्वतादि धातकीखण्डमें हैं ।। २५८३ ॥ प्रसुगार गिरिवार्ण, विध्याले हवंति ते सम्बे । गान विचित वण्णा, सालिरगो बादईसके ।। २५८३ ॥ कवा धावडे ।। २५८२ । अर्थ :- इष्वाकार पर्वतों के अन्तराल में नानाप्रकार के विश्चित्र वर्णवाले एवं घोमासे युक्त · दोनों दीपों में विजयादिकोंका साहस - बिजया विजयाथ तहा, विजयद्वाणं हवंति विजया । मेवगिरीनं मेरु, कुल गिरिषो कुल गिरोणं च ॥ २५६४ ॥ णाभिगिरीणं' णाभी, सरिया परियाण दोस् दोबेस पनिधिगदा अबगाडुच्छेह - सरिच्छा' बिणा मेद ।। २५८५ ।। म :- दोनों द्वीपोंमें प्ररिभिगत क्षेत्र क्षेत्रोंके सदृश, विजयार्ध विजयाकि सहस, मेरु पर्वत मेरुपर्वतोंके सदृश, कुलपर्वत कुलपर्वतोंके सहय, नामिगिरि नाभि गिरियोंके सदृश और नदियाँ नदियोंके सदृश हैं। इनमेंसे मेरु-पर्वतके अतिरिक्त शेष सबका अवगाह एवं ऊंचाई सदृश है ।। २१८४-२५८५ ॥ १.व.क. ख. प. उ. पामगिरी सामगिरी सरल सरिवासया । २. ब सारिन्छ ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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