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तिलोपती
धातकीखण्ड में मेरु पर्वतों का विन्यास
दोन्हं इसुगाराणं विच्वाले होंति ते दुषे विजया । गिभाद्वारा एक्केक्का ते रात छ -- ओवा की
चक्कद्ध
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अर्थ :- दोनों इष्वाकार एवंतोंके मध्य में वे दो क्षेत्र हैं । प्रचक्र प्राकार सदृश उन दोनों क्षेत्रों में एक-एक मेरु पर्वत है ।। २४८१॥
पर्वत तालाब श्रादिका प्रमाण
खण्ड में हैं ।। २५६२ ॥
सेस - सरोवर-सरिया, विजया कुंडा य जेतिया होति । तेचिय डुगुण
जंबूदरी
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मेवगिरी ॥२५६१ ॥
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:- जम्बूद्वीपमें जितने पर्यंत, तालाब, नदियां, क्षेत्र और कुण्ड हैं उनसे पूने घातकी -
[ गामा : २५०१-२५६५
वे सब पर्वतादि धातकीखण्डमें हैं ।। २५८३ ॥
प्रसुगार
गिरिवार्ण, विध्याले हवंति ते सम्बे ।
गान विचित वण्णा, सालिरगो बादईसके ।। २५८३ ॥
कवा धावडे ।। २५८२ ।
अर्थ :- इष्वाकार पर्वतों के अन्तराल में नानाप्रकार के विश्चित्र वर्णवाले एवं घोमासे युक्त
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दोनों दीपों में विजयादिकोंका साहस
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बिजया विजयाथ तहा, विजयद्वाणं हवंति विजया ।
मेवगिरीनं मेरु, कुल गिरिषो कुल गिरोणं च ॥ २५६४ ॥
णाभिगिरीणं' णाभी, सरिया परियाण दोस् दोबेस
पनिधिगदा अबगाडुच्छेह - सरिच्छा' बिणा मेद ।। २५८५ ।।
म :- दोनों द्वीपोंमें प्ररिभिगत क्षेत्र क्षेत्रोंके सदृश, विजयार्ध विजयाकि सहस, मेरु
पर्वत मेरुपर्वतोंके सदृश, कुलपर्वत कुलपर्वतोंके सहय, नामिगिरि नाभि गिरियोंके सदृश और नदियाँ नदियोंके सदृश हैं। इनमेंसे मेरु-पर्वतके अतिरिक्त शेष सबका अवगाह एवं ऊंचाई सदृश है ।। २१८४-२५८५ ॥
१.व.क. ख. प. उ. पामगिरी सामगिरी सरल सरिवासया । २. ब सारिन्छ ।