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________________ उत्थी महाहियारो ताणं वो पासेसु वणसंडा बेवि तोरणेहि जुबा I - 1 करणी गावा : २५७६- २५०० ] - उन वेदियोंके दोनों पार्श्व भागों में बेदी, तोरण, पुष्करिणी एवं वापिकाओंसे युक्त और जिनेन्द्र प्रासादोंसे रमरणीय बनखण्ड हैं ।। २५७६ ।। वनसंजेस दिव्या, पासावा विविह सुर-पर-मिट्टण समाहा सड विसा- मरिका ।। २५७६ ॥ शेष कूटोंपर व्यन्तरोंके पुर हैं ।। २५७६ ।। · रयण नियरमया । वेदी तोरणेहि जुवा ||२५७७ ।। पर्थ :- इन अनखण्डों में देव एवं मनुष्यों के युगलों सहित, तटवेदी एवं तोरणोंसे युक्त और विविध प्रकारके रत्न समूहोंने निमित दिव्य प्रासाद है ।।२५७७॥ उर इसुगाराणं समंसदो हवदि विम्ब-तड- देवी । वणवणवेदी पुरुष', पयार वित्वार परिपुष्मा ||२५७८ ॥ चसारो चचारों, पसक्कं होंति जिन भवरणमात्र कूजे, सेसेसु . - - अर्थ :- इष्वाकार पर्वतोंके ऊपर चारों ओर पूर्वोक्त प्रकार विस्तारसे परिपूर्ण दिव्य तटवेदी, वन और वन-वेदी स्थित है | २५७८६८ ।। १. ८. ब. क्र. ज. प. उ. पुष्वापार । - - · - सर्ग: उनमें से प्रत्येक पर्वतपर चार-चार उत्तम कूट है। प्रथम कूटपर जिनभवन है और ताण वर कूडा । - वेंतर घातकखण्डस्य जिनभवन एवं व्यभ्वरप्रासादोंका सादृश्य [ ६८७ - देवाण दिव्य पासावा | तद्दीने जिरण भवणं, पॅतर सिह्-पवण्णिव-जिम-भवन वेतरावास सारिच्छा ।। २५८० ।। - पुराणि ॥ २५७६।। - अर्थ :- उस द्वीपमें जिनभवन और ध्यन्तरदेवोंके दिव्य प्रासाद निषधएसके वर्णनमें निर्दिष्ट जिन भवनों और व्यन्तरावासोंके सदृश हैं ।। २५८० ।।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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