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तिलोयपण्णती
! गाथा : २५७२-२५७५ अ :-उस घातकोखण्हडीपको चारों शोरसे दिव्य रस्नमय जगती वेष्टित करती है । इस जगतीका वर्णन जम्बूद्वीपमें वर्णित जगतीके ही समान है ।।२५७१।।
हष्वाकार पर्वतोंका निरूपण-- दक्षिण - उत्तरमागे, सुगारा दविज्ञणुसरायामा । एस्केको होदि गिरी, पाइसं 'पविमवतो ॥२५७२।।
वर्ष :-घातकीखण्डद्वीपके दक्षिण और उत्तरभागमें इस द्वीपको विभाजित करता हुमा दक्षिण-उत्तर लम्बा एक-एक इष्वाकार पवंत है ॥२५७२।।
निसह - समान्छेहा', संसग्गा लवण-काल-जलही !
अभंतरम्मिमा मुहापुरष सोणा ॥२५७
पर्य :-लवण और कालोद समुद्रोंसे संलग्न वे दोनों पर्वत निवध पर्वतके अमान तथा अम्पन्तरमागमें अंकमुख एवं बाह्यभागमें खुरपा (क्षुरप्र) के माकारवाले हैं ॥२५७३।।
जोयण - सहस्समेलक, वा सम्बत्य ताण पत्तेपर्क । जोयण - सयमबगाहा, कणयमया ते पिराजति ॥२५७४॥
म :-उन पर्वतों से प्रत्येकका विस्तार सर्वत्र एक हजार योजनप्रमाण है। एकसौ योजन प्रमाण अवगाह मुक्त वे स्वर्गमय पर्वत अत्यन्त शोभावाले हैं ।।२५७४।।
एक्केका तह-वेदी, सुचवि दोसु पासेसु। पंच-सष-परवासा, मुम्बसन्धया - कोस सच्चा ॥२५७५।।
म :-उन पर्वतोंके दोनों पाश्र्वभागोंमें पांच सौ धनुव प्रमाण विस्तार सहित, दो कोस ऊंची और फहराती हुई व्यजामोंसे संयुक्त एक-एक तटवेदो है ।।२५७५।।
१.इ.ब.क. स. परिपत्र । न. प. पविभाति । २.प. प. उ. मागुम्बेहो, क. माणुनहो । मुहा, ब. अ. अंकमुहा: ४... कोस ।
1. प. प.