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________________ गाथा : २५२४-२५२८ ] पजत्यो महाहियारों [ ६३ कुभोगभूमिमें उत्पन्न मनुष्योंकी प्राकृतिका निरूपणएस्कोरक - लंगुलिका', पैसणकाभासका म गामहि । पुब्वाविस विसास, बउ - दीवाणं कुमागुसा हॉति ॥२५२४॥ :-पूर्वादिक दिशाओं में स्थित चार द्वीपोंके कुमानुष क्रमशः एक अंधाराले, पूछवाले, भीपवाले और प्रभाषक अर्थात् गूगे होते हुए इन्हीं नामों से युक्त हैं ।।२५२४।। सबकुलिकच्चा कम्णप्पावरचा लंबकण्ण - ससकाया । अग्गि - दिसाविस कमसो, चउ - शेव-कुभागसा एवं ॥२५२५॥ -प्राग्नेय-आदिक विदिशाओंमें स्पिस चार टोपोंके ये कुमानुष क्रमशः शष्कुलीकणं, कर्णप्रावरण, लम्बकणं और शशकणं होते हैं ॥२५२५॥ सिंहस्स - साण-महिस'-बरहा-सप्पूल-चूक-कपि-वबणा । समलि - कन्जेकोरुग - पाहुदीगं अंतरेस से कमसो ॥२५२६॥ वर्ग :-भाष्कुलोकर्ण और एकोरुक आदिकोंके बोचमें अर्थात् अन्तर-दिशामोंमें स्थित माठ धोपोंके पे कुमानुष क्रमशः सिंह, अश्व, श्वान, महिए, वराह. पाल, घूक और बन्दरके मुत सहा मुखवाले होते हैं ।।२५२६।। मच्छ-मुहा काल-मुहा, हिमगिरि-पणिषोए पुष्व-पच्छिमयो। मेस - मुह • गो - मुहम्खा, दक्षिण-वेयरड-परिणबीए ॥२५२७।। प्रर्ष :--हिमवान पर्वतके प्रणिधिभागमें पूर्व-पश्चिम दिशामों में क्रमश: मत्स्यमुख एवं कालमुख तथा दक्षिण-विजया के प्रणिधिभागमें मेषमुख एवं गोमुख कुमानुष रहते हैं ॥२५२७।। पुष्वापरेण सिहरि - प्पणिपीए मेघ-विज्यु-मुह-शामा । आईसण - हरिव - मुहा, उत्तर - वेयस - पचिपीए ॥२५२६॥ १... क. प. य. र, रंगुलिका । २. . . . पाणपहरिपोबरहा । इ. स. प. सारखबहरित ___
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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