________________
starts ... Nikk
sath xxx. १६ ६७४ ]
तिलोयपष्णात्ती [ गाथा : २५२६-२५३० धर्म:-शिखरीपर्वत के पूर्व-पश्चिम प्रणिधिभागमें क्रमश: मेघमुख एवं विद्य न्मुख तथा ___ उत्तर-विजयार्षके प्रणिधिभागमें प्रादर्श ( दर्पण ) मुख एवं हस्तिमुख कुमानुष होते हैं ।।२५२८।।
एबकोरुगा गुहासु, वसंति भुजति मट्टियं मिझें ।
सेसा तर - तल - वासा, पुप्फेहि फलेहि जीपंसि ।।२५२६॥
प्रथं :- इन सबमें से एकोरुक कुमानुष गुफाओं में रहते हैं और मोठो मिट्टी खाते हैं। शेष सब कुमानुष वृक्षोंके नीचे रहकर फल-फूलोंसे जीवन व्यतीत करते हैं ॥२५२६।।
पाइसंग - विसास, तेलियमेता वि मंतरा दोवा ।
तेसु तेसियमेसा, कुमाणसा होति सपणामा ॥२५३०॥
प:-धातकोखण्डद्वीपको दिशाओंमें भी इसने ( ४८ ) हो अन्तरदीप और उनमें रहने वाले पूर्वोक्त नामोंसे युक्त उतने ही कुमानुष है ॥२५३०।।
विरोधार्य :--सरणसमुद्रकी पूर्व दिशागत द्वीपोंमें एकोएक-एक जंघावाले, दक्षिण में लांगलिका-पुछवाले, पश्चिममें वैषारिणक-सींगवाले भोर उत्तर दिशामें अमाषक-गूगे कुमनुष्य रहवे है। आग्नेयमें शकुलिकर्ण, नैऋत्य कर्णप्रावरण-जिनके कर्ण वस्त्रोंके सदृश शरीरका प्राच्छादन करते हैं, वायम्पमें सम्बकर्ण और ईशानमें पाशकर्ण कुमनुष्य रहते है । दिशा एवं विदिशामोंके पाठ अन्तरालोंमें क्रमशः सिंहमुस, अश्वमुख, स्वानमुख, महिष ( मैसा ) मुख, वराह (सूकर) मुख, शार्दून (म्याघ्र ) मुख, घूक ( घुग्घू । मुख मोर नन्दरमुख कुमनुष्य रहते है। हिमवान् कुलापलके समीप पूर्वदिशामें मीनमुख मोर पश्चिममें कालमुख, दक्षिण-विजया के समीप पूर्व में मेषमुख और पश्चिममें गोमुख, शिखरोकुलाचलके पूर्व में मेषमुक्ष और पश्चिममें विद्य मुख तथा उत्तर-वित्रपाके पूर्व में दर्पणमुख और पश्चिममें हाथीमुख कुमनुष्य रहते हैं।
[ चित्र अगले पृष्ठ पर देखिये }