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________________ गाषा : २५०६-२५१४ ] उत्यो महाहियारो [ ६५६ भयं :- उस द्वीपका अधिपति मागध नामक व्यस्तर देव एक पत्यको मायुवाला है और उस दीपमें बहुत परिवार युक्त अनेक प्रकारके विनोद पूर्वक क्रीमा करता है ॥२५०८।। पगिषीए नंबुबीच, खिवि - बणिय वइजयंत वारेस । संखेजड · गोपणागि, गंतूनं लवणसलिलम्मि ॥२५०६।। परतण • गामो वीओ, जिणिव-पासाव भूसियो रम्मो । इंदादित उपवेसो, कास - चसा तस्स उग्छष्णो ॥२५१०।। प:-जम्बूद्वीपके पार्श्वभागके क्षेत्रमें (पूर्व) वणित वैजयन्त द्वारसे लवणसमुद्रके जल में संख्यात योषन जाकर जिनेन्द्र भवनों से विभूषित अत्यन्त रमणीय वरतनु नामक दीप है। जिसके विस्तार आदिका उपदेश काल-वश नष्ट हो गया है ॥२५०९-२५१०॥ तस्सि बोवाहियाई बरतणु • गामण तरी देवो। बहू - विह - परिवार - अबो, कौरवि लोलाए पल्लाऊ ।।२५११।। w:-उस द्वीपका अधिपति बरतनु-नामक व्यन्तरदेव एक पल्यको आयुषाला है पोर बहुत प्रकारके परिवारसे युक्त होकर लोसा-पूर्वक क्रीडा करता है ।।२५११।। भरहक्लेस - पग्गिय, सिंधु-पणिषीए लवजलाहिम्मि । संखेज्म - जोयणाणि, गछिय बीमो पभासति ।।२५१२।। पर्भ :-पूर्व वणित भरतक्षेत्रको सिन्धुनदी के पाश्वभागसे लवगसमुद्रके जलमें संभ्यास ___योजन जाकर प्रभास नामक द्वीप है ।।२५१२।। मायषडीव • समारणं, सव्वं पिय वणणं पभासस्स । बेदि परियार - मुदो, पभास - पामो सुरो तस्सि ॥२५१३॥ ।-प्रभासद्वीपका सम्पूर्ण वर्णन मागधद्वीपके सहा है । इस द्वीपमें परिवारसे युक्त ___ होकर प्रभास नामक देव रहता है ।।२५१३।। एरावर - विजनोविद - रपोरा • पाहिगीए पगियोए । मागणदीव - सरिच्छो, होवि समुद्दम्मि मागषो बोलो ।।२५१४॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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