________________
६६८ ]
तिलोयपाती
[ गाथा : २५०३-२५०८ मर्ग :--लकरणसमुद्रकी जगतीसे बयालीस हजार ( ४२००० ) योजन प्रमाण प्रवेश करके चारों पर्वतोंके पार्वमार्गोमें सूर्य द्वीपोंकी पोति चन्द्र-द्रीप है ॥२५०२॥
बारस - सहस्समेत्ता, जोयणया जंतुदीव - जगवीवो ।
गंपूर्णाणल • रिसाए, होदि समुद्दम्मि रवि - दीयो ।।२५०३।।
वर्ष : - लवणसमुद्र में जम्बूदीपको जगतीसे बारह हजार (१२०.० योजन प्रमाण जाकर बायण दिपा 'रवि' नामक द्वीप है ।।२५०३।।
मिलोवरियों , सारस- या ।
उत्तुंगो समयको, तेतिय - रंग य गोदमो गाम ॥२५०४॥
प्रपं:-चित्रापृथिदीके उमरिम तससे ऊपर बारह हजार ( १२.०० ) योजन प्रमाए ऊपा, गोल और बारह हजार योजन विस्तारवाला गौतम नामक द्वोप है ॥२५०४॥
विख्यो न्य वण्पण - दो, तरसेगा वि गोदमो गाम । 'सस्सि बीमाहिबई, पेटुति पल्लं पमाचाऊ ॥२५०५।।
प:-उम्र द्वीपका अधिपति गौतम नामक ग्रन्तरदेव एफ पस्य प्रमाण आयुवाला है और विजयदेवके समान वर्णनसे युक्त है ॥२५०५॥
भरहाभंतर - वष्णिव, गंगा - पभिषोए लवणतोपम्मि ।
संज्ज - जोयणाणि, गंपूर्ण होवि मागको दोस्रो ॥२५०६॥
वर्ष : पूर्व कथित प्ररतक्षेत्रको गंगानदीके पापवसे पवरणसमुद्र में संन्यात योजन आनेपर मागघद्वीप है ॥२५०६॥
उन्छेह-वास-पाविस, उपएसो तस्स संपइ - पट्टो।
चित्त पर - वण - चाह बिगिद-भवहि रमणिलो ।।२५०७॥
सपं :-( वह मागधद्वीप )चित्तको प्रिय रंगोंसे सुन्दर एवं जिनेन्द्र भवनोंसे रमणीय है। इस समय उस द्वीपके उत्सेन और विस्तारादिक विषयमे उपदेश नम हो गया है ।।२५०७।।
तस्ति रोवाहिवई, मागध - पामेग बतरो वेवो । बह - परिवारा कोडवि, विविह - विगोवेण सम्मि पल्लाऊ ।।२५०८।।