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________________ गापा : २४१८-२५०२ ] उत्यो महाहियारो [ ६६७ लवणसमुद्रस्य सूर्यदीपादिकोंका निर्देशबावाल • सहस्साई, जोपरगया जंबुवीय - जगदीयो । गंतूण अह वीवा, पामेर्ण 'सूरबीलो सि ||२४|| ४२०००। अपं:-- जम्बूद्वीपकी जगतोसे वशालीस हजार ( १२... 1 मोबन जाकर 'सूर्यद्वीप' । नामसे प्रसिद्ध पाठ द्वीप हैं ।।२४६८।। पुम्ब-पपग्निव-कोस्मह पहरोनं हवंति बोस पासेस। एरे रीवा मणिमय, निरिणव - पासाद - रमणिमा ||२४|| मर्ग :- मणिमय जिनेन्द्र-प्रासादोंसे रमनीय ये द्वीप पूर्वमें बतलाए हुए कौस्तुभादिक पर्वतोंके दोनों पावभागोंमें स्थित है ।।२४६६।। सम्बे समयट्टा, बाबाल - सहस्त - बोपण - पमाणा । परिपालय • चाक, ता - बेदी सोरहि सुदा ॥२५००॥ ४२०००। मर्ग :-ये सब तोप गोल है । चयालीस हजार ( ४२०००) योजन प्रमाण विस्तार पुक्त हैं तथा सुन्दर मार्गो, मट्टालयों, तट-वैदियों एवं तोरणों से युक्त हैं ।।२५००।। खेसंबर - देवावं, अहिवइ - देवा वसति एस। बहु - परिवारा वस - षण • तुगा पल्स पमागाक ॥२५०१॥ मर्ग:-दस धनुष ऊँचे और एक पल्य प्रमाण प्रायुवाले वेलन्धर नामक अधिपति देव बहुत परिपारसे संयुक्त होकर इन वीपों में रहते हैं ।।२५० ।। सवनंबुहि - जगवीरो, पविलिय बाबाल-गोपग-सहस्सा । बउ - गिरियो पासेलु, सूर - होवो न परवीवा ॥२५०२॥ १, . सुरखी।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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