________________
७.
तिलोयपण्णत्ती [ गापा : २५१५-२५१६ प:-ऐरावत-क्षेत्रमें कही हुई रक्तोदा नबोके पावभाग, मागयद्वीपके सहन (लवरण) समुद्र में मागपदीए है ।।२५।४।। १० प्रबरराजित-गरम्य पनि होलि पणजलहिम्मि ।
बरसनु - गामो वीमो, बरतम् - दोबोवमो भन्यो ।।२५१५।।
:-प्रपराजितद्वारके पार्श्वभागमें वरतनुद्वीपके सहश्च मन्य करतनु नामक दीप लवणसमुद्र में स्थित है ॥२५१५।।
एरावर-शिवि-जिग्गव-रता पणिपीए लवजहिम्मि ।
प्रयो पभास - बोसो, पभास - बोलो बि ।।२५१६॥
प:-सवणसमुबमें ऐरावतक्षेत्रमेंसे निकली हुई रक्तानदीके पार्वभागमें प्रभासढीएक सहा मन्य प्रभासदीप स्थित है ॥२५॥
ने अम्मंतरभागे, सबणसमुहस्स पम्बा बोबा ।
से सने बेट्टतेगियमेवं वाहिरे भागे ।।२५१७।।
पर्य:-लवणसमुद्रके अभ्यन्तरभागमें जो पर्वत पोर ढोप हैं, वे सब नियमसे उसके बाह्यभागमें भी स्थित है ॥२५१७॥
४८ कुमानुष-दीपोका निरूपणसेवा लवणसमुई। अबदाल कुमानुसाण चरबीसं । साभतरम्गि भागे, तेत्तियमेवाए बाहिरए ॥२५१८॥
४८ । २४ । २४ वर्ष :-लवणसमुहमें पड़तालीस (४८) कुमानुष-दोष है । इनमें से चौबीस ( २४ ) द्रोप तो अम्पतर भागमें मोर इतने ( २४ ) ही बाल-भागमें हैं ।।२५१t
चत्तारि चउ-विसास', पर - विवितासहति पत्तारि । अंतर - विसास अट्ट य, अटु य गिरि-पमिषि-लागेल ॥२५१६॥