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उत्यो महाहियारो
पादालस्स विसाए, पच्छिमए कोतूभो 'वसवि सेलो ।
पुष्षाए 'कोटथुभासो, दोणि वि ते वज्जमय मुला ॥२४८७ ॥
गाया : २४८७ - २४६२ ]
धर्म: पातालको पश्चिमदिशा में कौस्तुभ और पूर्व दिशा में कौस्तुभास पर्वत स्थित है । ये दोनों पर्यंत वचपय मूलभाग से संयुक्त हैं ।।२४८७।।
मम्मि - रजद - रचिया, प्रग्येलु विधिह-दिव्य - रयणमया ।
चरि अहालय चारू, तड केवी तोरणेहि जुदा ॥२४८६ ॥
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ता तेसु वर
: पर्वत मध्यभाग में रजत ( चाँदी ) से और अग्रभागों में विविध प्रकारके विव्य
रत्नोंसे निर्मित है, तथा सुन्दर मार्गों अट्टालयों, तट-वेदियों एवं वोरोंसे युक्त हैं ।। २४८६ ॥
कार्यक
हेडिम मज्झिम-उवरिम-वासानि संपड़पट्टा । पासावा, विषिस वा विरायंति || २४८६ ॥
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धर्ष :- इन पर्वतों नोचे का, मध्यका और ऊपरका जो कुछ विस्तार है, उसका प्रमाण इससमय नष्ट हो गया है। इन पर्वतोंपर विचित्र रूपवाले उत्तम प्रासाद विराजमान है ।। २४६ ॥
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वेलंधर बेतरया, पचव
णामेहि संजुवा सु ।
कोति मंदिरेस विजयो भ्ध विधाउ पहूदि जुबा ॥ २४६०॥
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अर्थ :- इन प्रासादों में विजयदेवके सह प्रपनी श्रायु आदिसे युक्त भौर पर्वतों के नामोंसे संयुक्त वेलन्धर व्यन्तरदेव क्रीड़ा करते हैं ।। २४६० ।।
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उनको गामेण गिरी, होति कर्ववस्त उत्तर दिसाए ।
वाभास afteरण विसाए से नीलमणि - वण्णा ।। २४९१ ॥
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अर्थ
नामक पर्वत स्थित हैं। ये दोनों पवंत नोलम रिंग जैसे वर्णवाले हैं । २४६ १ ॥
- कदम्बपासालकी उत्तर दिशामें उदक नामक पर्वत और दक्षिण दिशामें उदकामास
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सिव-रणामा सिवदेओ कमेण उवरिम्भिताच सेलाएं ।
कोल्पुभदेव
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सरिन्छ, भाउ प्यहुबीहि चेति ।।२४६२ ॥
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१. ८. ब. क. व. य.च.मबि २. द.क.म. य. कुबुभाटी व कुत्वभावो व कुपभासरे, ....उ. पट्टी