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________________ ६६४ ] तिलोयपण्णत्तो [ गाथा २४८४ - २४९६ अर्थ :-- समुद्रके दोनों किनारोंपर और शिखरपर बतलाई गई देवोंकी नगरियोंके पावभाग वमय पृथिवीके ऊपर भी इतनी ही नगरियां हैं, ऐसा कितने ही आचार्य वर्णन करते हैं ।। २४८३|| पातालोंके पार्श्वभागों में स्थित पाठ पर्वतोंका निरूपण - बावाल- सहस्सारण, जयममा जलहि दो - ताहिती | पविसिय विदि विवरागं' पासेस होंति घट्ठगिरी || २४८४ ॥ . अर्थ :- समुद्रके दोनों के करके पातालोंके पार्श्वभागों में पाठ पर्वत हैं ।। २४८६४ ॥ सोलस सहस्त अहियं, जोयण-सबखं च सिरिय-विश्लभ । पक्काणं जगदी गिरोगि मिसिन वो लक्खा ।। २४८५ ।। - - ४२००० । बाजार योजनेप्रमा प्रवेश ▾ ११६००० ८४००० | २००००० । अर्थ :- प्रत्येक पर्वतका तिरछा विस्तार एक लाख सोलह हजार (११६००० ) योजन प्रमाण हैं । इसप्रकार जगतीसे पर्वतों तकका अन्तराल ( ४२०००+४२०००-८४००० ) तबा पर्वतों का विस्तार मिलाकर कुल ( १९६००० + ६४०००-२००००० ] दो लाख योजन होता है २४६५|| पाठान्तर ३ ते कुंभद्ध सरिच्छा, सेला जोयण सहस्सनुतरंगा एवाणं 'खामाई, ठा विभागं च भासेमि ।। २४८६ ॥ ३. द. व. क्र. म. म. च. ग्रामाए । . ▾ - १००० । :- अर्धघटके सदृश वे पर्वत एक हजार ( १००० ) योजन उसे हैं। इनके नाम मोर स्थान- विभाग कहते हैं ॥१२४८६ ।। १. य. ज. य. खिदिराए २द. क. जय मिशिदोरण वो लक्स व उ. मिमिदोलखा ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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