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तिलोयपण्णत्तो
[ गाथा २४८४ - २४९६
अर्थ :-- समुद्रके दोनों किनारोंपर और शिखरपर बतलाई गई देवोंकी नगरियोंके पावभाग वमय पृथिवीके ऊपर भी इतनी ही नगरियां हैं, ऐसा कितने ही आचार्य वर्णन करते हैं ।। २४८३||
पातालोंके पार्श्वभागों में स्थित पाठ पर्वतोंका निरूपण
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बावाल- सहस्सारण, जयममा जलहि दो - ताहिती | पविसिय विदि विवरागं' पासेस होंति घट्ठगिरी || २४८४ ॥
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अर्थ :- समुद्रके दोनों के करके पातालोंके पार्श्वभागों में पाठ पर्वत हैं ।। २४८६४ ॥
सोलस सहस्त अहियं, जोयण-सबखं च सिरिय-विश्लभ ।
पक्काणं जगदी गिरोगि मिसिन वो लक्खा ।। २४८५ ।।
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४२००० ।
बाजार योजनेप्रमा प्रवेश
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११६००० ८४००० | २००००० ।
अर्थ :- प्रत्येक पर्वतका तिरछा विस्तार एक लाख सोलह हजार (११६००० ) योजन प्रमाण हैं । इसप्रकार जगतीसे पर्वतों तकका अन्तराल ( ४२०००+४२०००-८४००० ) तबा पर्वतों का विस्तार मिलाकर कुल ( १९६००० + ६४०००-२००००० ] दो लाख योजन होता है २४६५||
पाठान्तर ३
ते कुंभद्ध सरिच्छा, सेला
जोयण सहस्सनुतरंगा
एवाणं 'खामाई, ठा विभागं च भासेमि ।। २४८६ ॥
३. द. व. क्र. म. म. च. ग्रामाए ।
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१००० ।
:- अर्धघटके सदृश वे पर्वत एक हजार ( १००० ) योजन उसे हैं। इनके नाम मोर स्थान- विभाग कहते हैं ॥१२४८६ ।।
१. य. ज. य. खिदिराए २द. क. जय मिशिदोरण वो लक्स व उ. मिमिदोलखा ।