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गाथा । २४७६-२४८३ } चउत्यो महाहियारो
[ ६६३ मर्ग:-लवणसमुद्रके बह-मध्य-मागमें सातसो योजन पौर दो कोस ( ७०० योजन ) प्रमाण ऊपर जाकर प्राकाषामें मट्ठाईस हजार ( २८००० ) नरियां हैं ॥२४७८।।
णयरोग ता' बहु-विहार-रपणमया हवंति समझा। एवान पत्तक, विखंभो जोयण - यस - सहस्सा ।।२४७६॥
म:- नगरियोंके तट बहुत प्रकारके उत्तम रत्नोंसे निर्मित समान-गोल हैं। इनमेंसे आजका विस्तारासाहला(KAREET ||२४७६ ।।
पत्ते एयरीणं, 'तर - बेदीओ हति विवधाओ।
धुल्यंत - घय - बाओ, बर - तोरण • पट्टवि-जताओ ।।२४८०॥
प्रबं:-प्रत्येक नगरी को फहराती हुई ध्वजा-पताफानो भौर उत्तम तोरणादिकसे संयुक्त दिव्य तट-बेदिया है ।।२४००।।
ताणं घर-पासावा', पुरीण वर-रयण-गियर-रमधिमा ।
टुति देवाणं, वेलबर • भुजग - णामारणं ॥२४८१॥
वर्ग :-उन नगरियों में उत्कृष्ट रत्नोंके समूहोंसे रमणीय वेलन्धर और भुजग नामक ( नागकुमार } देवोंके प्रासाद स्थित हैं ।।२४८५।।
गिण-मन्दिर-रम्मायो, पोक्खरणी उनवणेहि जुत्तायो ।
को दणि समस्यो, प्रगाइजिहमाओ पपरोभो ॥२४८२॥
म :-जिनमन्दिरोंसे रमणीय पौर वापिकाओं तथा उपवनोंसे संयुक्त इन अनादिनिम्नम नरियों का वर्णन करनेमें कौन समर्थ हो सकता है ? ।।२४८२॥
पच्चिा-सुराच गयरी-पणिपोए जलहिता -सिहरेसु । वाज • पुढवीए उरि, तेतिय पयराणि के वि भासति ।।२४६३॥
पाठान्तरम् ।
............ सदा । २. ५. ब. क.अ. य. न. तब । १. व.ब.क. प. म. *. विमाए । ४.ब..क.प. य. उ. पासादो।