SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 689
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तिलोयपम्पती [पाया । २४७४-२४७८ :-जनशिखरपर समुद्रका विस्तार दस हजार (१०००). योजन है। इसप्रकार संमाइणो में और लोकविभागमें कहा गया है ।।२४७४।। पाठान्सर। लवणसमुद्र के दोनों तटोंपर ओर शिवरपर स्थित नरियोंका वर्जन-- तु- तडाए सिहरम्मि य, बलयायारेण बिम्ब-जयरीओ। जलनिहिलो पट्टते, बाबाल - सहस्स-एक-लक्खारिग ॥२४७५॥ १४२०० । .मई :- समुद्र के दोनों किनारोंपर तथा शिवरपर वलयके ग्राकारसे एक लाख बयालीस हजार [ १४२०००) दिव्य नगरियों स्थित है॥२४७2017" प्रमंतर - वेदोवो, सत्त - सर्व बोयणाणि बहिम्मि । पविसिय 'प्रायासेसु, बावाल - सहस्स - परीओ ॥२४७६।। ७०० खे । ४३०.०। प्रपं:-अभ्यन्तर वेदीसे सातसो योजन ऊपर जाकर आकाशमें समुद्रपर बयालीस हजार (४२... ) नरिया है ॥२४७६।। बाहिर - बेबीहिसो, सत्त - सया बोयपाणि उरिम्मि । पविसिय आयासेसु, पयरोप्रो बिहत्तरि सहस्सा ॥२४७७।। ७.01७२००.. मचं : बाह्य-वेदीसे सातसो योजन ऊपर जाकर प्रामाणमें समुद्रपर बहत्तर हजार (७२००० ) नगरियाँ हैं ॥२४७७॥ लवरपोवहि-बाहु-मग्झे, सत-सया मोयनानि दो कोसा। गंदून हॉति गयणे, 'प्रग्वीस - सहस्स - एयरोप्रो ।।२४७।। जो ७.० । को २१ २८०००। १. 4...क.. य च. सीमासेमु । २. ब. क. उ. में, ... य. का। १.५, पढाबोस ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy