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________________ गाषा । २४७२-२४७४ ३ पउत्थो महाहियारो [ ६६१ मर्ष:-भूमिसे आकाशमें समुद्रको उचाई मवस्थितरूपसे ग्यारह हजार ( ११०००) __ योजन प्रमाण है ॥२४७१॥ [ पाठान्तर तस्सोपरि सिब - पक्ले, पंच-सहरूमाणि जोयणा कमसो। बददि जलरिएहि - जलं, 'पहले हाएदि तम्मेत्तं ॥२४७२।। [ पाठान्सरं स:-शुक्लपक्षमें इसके ऊपर समुद्रका जल क्रमशः पाँच हजार योजन प्रमाण बढ़ता है मौर कृष्णपक्षमें इतना ही हानिको प्राप्त होता है ।।२४७२।। [पाठान्तर पातालमुलोंके पाश्र्वभागोंमें जलकरणों के विस्तारका प्रमाणपायातून शिर - गिय सह विमोफिल लेडिज गिय-णिय-परिवषीसु गहे, सलिल • कमा जति सम्मेचा ॥२४७३।। ५००००। ५००० ।५०.। प:-पातालों के अन्तमें अपने-अपने मुख-विस्तारको पांचसे गुणा करनेपर जो प्राप्त हो, तत्त्रमाण आकाशमें अपने-अपने पाश्वंभागोंमें जलकरण जाते हैं ॥२४७३।। विशेषा:-ज्येष्ठादि पातालोंका मुख-विस्तार क्रमशः १०००० यो०, १००० यो• और १०. पोजन है । शुक्लपक्षमें जन जल-वृद्धिंगत होता हया बढ़ता है तब ज्येष्ठ पातालोंके पापभागों में ५०००० योजन पर्यन्त, मध्यम पातालोंमें ५००० योजन और पाघन्य पातालोंके पावभागोंमें ५०. योजन पर्यन्त जलकरण उछलते हैं। 'लोगाइणो' और लोकविभागके मतानुसार जलशिधारका विस्तार--- जल-सिहरे विक्वंभो, मलणिहिणो जोयना वस-सहस्सा । एवं संगाइगिए, लोयविभाए हि णिद्धि ।।२४७४।। पाठान्तरम् । ---- -- - - --- ...ब.क.ज.म. ज. बहुवे गाएदि ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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