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________________ ६६] तिलोमपणतो [ गाथा : २४६८-२७१ दिसोपार्ष:-शुक्लपक्ष पूर्णिमा पर्यन्त समुद्रका जल भपनी सीमासे (७०० यो० से) ४.०० धनुष पर्यन्त बढ़ जाता है और कृष्णपक्षमें अमावस्या पर्यन्त इतना ही घट जाता है। जबकि १५ किम इलाय क किलोकितना घटेगा या बढ़ेगा? इसप्रकार राशिक करनेपर हानि-वृद्धि पयका प्रमाण " धनुष या अर्थात् २६६३ धनुष प्राप्त होता है। लोगाइणी ग्रन्थका भी यही मत हैपुह-मुह दुतवाहितो, पविसिय पगगउदि-जोयण-सहस्सा। सरणजले में कोसा, उदयो सेसेतु हाणि • चयं ।।२४६८।। मर्ष :-पर-पृषक दोनों किनारोंसे पंचाननै हजार योजन प्रमाण प्रवेश करने पर। लवरणसमुद्रके जलमें दो कोस ऊंचाई एवं शेषमें हानि-वृद्धि है ॥२४६८।। समयस्साए उवही, 'सरिसो ममीए होवि सिद • पक्थे । कमेण वोदि नहे, कोसारिण वोणि 'पुणिमए ॥२४६६।। मय:-लवणसमुद्र प्रमावस्याके दिन भूमि सहमा ( समतल ) होता है । पुनः शुक्लपक्षमें माकाशको ओर क्रमशः बढ़ता हुआ पूर्णिमाको दो कोस प्रमाण बढ़ जाता है ॥२४६६।। हाएदि हिण्ह - पक्खे, तेग कमेण च आय परिवगर । एवं लोगाइणिए, गंपप्पवरम्मि गिदि ।।२४७०॥ म : वह समुद्र ( शुक्लपक्षमें ) जितना वृद्धिंगत हुमा शश कृष्ण पक्ष में उसी क्रमसे उतना-उतना ही घटता जाता है । इसप्रकार श्रेष्ठ अन्य सोगाइसी में बतलाया गया है ।।२०।। अन्य आचार्यके मतानुसार समुद्रके जलकी हानि-वृद्धिएक्करस-सहस्साणि, जलपिहिणो जोषणागि गयणम्मि । भूमीले उच्छहो, होरि अवडिव - सही ॥२४७१॥ ११०००। [ पाठान्तरं १, ६. ब. क. प. प. उ. सरिसे । २. द. कममात हे. ब. अ. भ. प. उ. कमबहार पहेण । ३.६. ब. क. उ. युगामिए ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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