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तिलोमपणतो
[ गाथा : २४६८-२७१ दिसोपार्ष:-शुक्लपक्ष पूर्णिमा पर्यन्त समुद्रका जल भपनी सीमासे (७०० यो० से) ४.०० धनुष पर्यन्त बढ़ जाता है और कृष्णपक्षमें अमावस्या पर्यन्त इतना ही घट जाता है। जबकि १५ किम इलाय क किलोकितना घटेगा या बढ़ेगा? इसप्रकार
राशिक करनेपर हानि-वृद्धि पयका प्रमाण " धनुष या अर्थात् २६६३ धनुष प्राप्त होता है।
लोगाइणी ग्रन्थका भी यही मत हैपुह-मुह दुतवाहितो, पविसिय पगगउदि-जोयण-सहस्सा।
सरणजले में कोसा, उदयो सेसेतु हाणि • चयं ।।२४६८।।
मर्ष :-पर-पृषक दोनों किनारोंसे पंचाननै हजार योजन प्रमाण प्रवेश करने पर। लवरणसमुद्रके जलमें दो कोस ऊंचाई एवं शेषमें हानि-वृद्धि है ॥२४६८।।
समयस्साए उवही, 'सरिसो ममीए होवि सिद • पक्थे ।
कमेण वोदि नहे, कोसारिण वोणि 'पुणिमए ॥२४६६।।
मय:-लवणसमुद्र प्रमावस्याके दिन भूमि सहमा ( समतल ) होता है । पुनः शुक्लपक्षमें माकाशको ओर क्रमशः बढ़ता हुआ पूर्णिमाको दो कोस प्रमाण बढ़ जाता है ॥२४६६।।
हाएदि हिण्ह - पक्खे, तेग कमेण च आय परिवगर ।
एवं लोगाइणिए, गंपप्पवरम्मि गिदि ।।२४७०॥
म : वह समुद्र ( शुक्लपक्षमें ) जितना वृद्धिंगत हुमा शश कृष्ण पक्ष में उसी क्रमसे उतना-उतना ही घटता जाता है । इसप्रकार श्रेष्ठ अन्य सोगाइसी में बतलाया गया है ।।२०।।
अन्य आचार्यके मतानुसार समुद्रके जलकी हानि-वृद्धिएक्करस-सहस्साणि, जलपिहिणो जोषणागि गयणम्मि । भूमीले उच्छहो, होरि अवडिव - सही ॥२४७१॥ ११०००।
[ पाठान्तरं
१, ६. ब. क. प. प. उ. सरिसे । २. द. कममात हे. ब. अ. भ. प. उ. कमबहार पहेण । ३.६. ब. क. उ. युगामिए ।