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गाषा । २४६६-२४६७ ] पउत्थो महायिारो
[ ६५६ प:-अमावस्याको अपने-अपने तीन भागों से क्रमशः परके दो भागों में जल रहता है और नीके तीसरे भागमें केवल वायु रहती है 11२४६५।।
५.. मोरयल का निम नल और भाषATre. ---
वास्तजल - - - ---
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चित्रापुर
ܐܬܝ ܕ݁ܪܺܝܫܒܢܠܠܓܠܠܠܓܝܢ
मता
भाग)
लवण समुद्र
समुग्रजसकी हानि-वृद्धिका प्रमाणपेलिज्जतो उवही, पवणेहि तहेव सीमंते । बाढदि हावि गयणे, बंड - सहस्सानि प्रतारि ॥२४६६।। दिवस परि भटु-सायं, सि-हिया बंगणि सुक्कि-किल्हाए'। ज्य - बड़ी पुवृत्तयाटुद - वेलाए उबरि जलहिजसं ॥२४६७॥
पर्व:-सोमम्त जिलपर ( स्थित उस्कृष्ट पातालोंको ) वायु द्वारा समुहका जल प्राकाशमें फेंका जाता है जो चार हजार ( ४०००) धनुष बढ़ता है और इतना ही घटता है। इसीलिए पूर्वोक्त (७०० योजन ऊपर प्रवस्थित ) जल में शुक्लपक्ष में प्रतिदिन तीनसे माजित पाठसौ(8) अनुप अर्षात् २६६ धनुष, २ हाथ पोर १९ मंगुल वृद्धि पौर कृष्णपक्षमें उतनी ही हानि हुआ करती है ॥२४६६-२४६७।। .. - -.-- - - -
-- - ----- - ....क.अ. य. ., सम्मः। २. य... ३. किवी।।