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तिलोयपपणत्ती [ गाथा : २४६२-२४६५ पाबालागं 'महवा, पले सोवम्मि बरति य ।
होयंति किल्ल - पासे, सहावदो सव • कालेसु२४६२॥
भवं :-पातालोंके पवन सर्वकाल स्वभावसे हो छुक्लपक्षमें बढ़ते हैं और कृष्णपक्षमें पटते है।॥२४६२।।
ज्येष्ठ पातालोंमें पवनको वृद्धिका प्रमाणबढी बावीस - सया, बावीसा जोयणाणि अदिरेगा। वो सिद पुहिना मुशिानं. मात्र ॥२४६३॥
२२२२ । । अर्थ:-शुक्लपक्षमें पूणिमा तक प्रतिदिन दो हजार दो सौ बाईस योजनोंसे भी अधिक पवनको वृद्धि हुअा करती है ।।२४१३॥
वार्थ:-ज्येष्ठ पातालके मध्यम भागमें पूरणमा पर्यन्त वायु-वृद्धिका प्रमाण ३३३३३३ योजन है ! यया-जनकि १५ दिनोंमें ( वायु ) वृद्धिषयका प्रमाण ३३३३३३ यो० है तब एक दिन में वृद्धिचयका क्या प्रमाण होगा? इसप्रकार राशिक करनेपर ( PRA -)२२२२॥ यो मध्यम भागमें पवनको वृद्धिका प्रमाण प्राप्त होता है । इसी प्रकार कृष्णपक्षमें अमावस्या पर्यन्त वायुका हानिधय और जसका वृद्धि घय समझना चाहिए।
पूर्णिमा और अमावस्याको पातालोंकी स्थितिपुणिमए हेडादो, णिय - णिय - दु-ति-भागमेत्त-पावाल ।
चेटुषि वाऊ उवरिम - तिय • भागे केवल सलिलं ॥२४६४।।
अर्थ :-पूणिमाको पातालोंके अपने-अपने तीन भागों में से नीचे के दो भागोंमें षायु पौर __ अपरके तृतीयभागमें केवल जस विद्यमान रहता है ॥२४६||
अमवसे उवरीयो, णिय-णिय-दु-ति-भागमेत परिमागे । कमसो सलिलं हेडिम • तिय - भागे फेवलं बाई ।।२४६५।।
१.क.ब. क. न. य. न. परिधा। २. १. २. स. प. य. स. मरिरेगो। ३. द. ब. क. ब. प. उ.