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________________ infecte उत्पो महाहियारो मध्यम और जघन्य पातालों में जनादिकका विभाग तिणि सहस्सा तिसया, तेतीस जुवाणि जोयण-ति- भागो । परोषकं णाव, मज्झिमय तियंस परिमाणं ।। २४५८६ ।। गाया : २४५८ - २४६१ ] आचार्य श्री विपि अर्थ :- मध्यम पातालोंमेंसे प्रत्येकके तीसरे भागका प्रमाण 9०० - ३३३३३ यो० ) तीन हजार तीनसो तेतीस योजन और एक योजनके तीन भागोंमेंसे एक भाग ( ३३३३३ योजन ) जानना चाहिए ।। २४५८।। तेत्तीस भहियाणं, तिणि सयाणं च जयन-ति-भागो । पचषकं वटुम्बं तियंस मार्ण - - अण्णा ।२४५६।। ३३३५ । अर्थ :- जघन्य पातालोंमेंसे प्रत्येकके तीसरे भागका प्रमाण तीनसौ तेतीस योजन और एक योजनके तृतीयभाग ( ०३३३३ यो० ) जानना चाहिए ।।२४५६ ।। लवणसमुद्रके जल में हानि-वृद्धि होनेका कारण - हेडिल्लम्म तिन्भागे, बसुमद्द दिवराण केवलो बाटो । मक्किल्ले जलवादी, चबरिल्ले सलिल पम्भारो ॥२४६० ॥ पवणेण पुवियं तं चलाचलं मक्क्रिमं सलिल जाएं । सवार चेट्ठषि सलिलं पवणाभावेण केवलं जी [ ६५७ तेसु ॥२४६१ । । :- पृथिवी विवर ( गड्ढे ) स्वरूप इन पातालों के कपरके विभागमें केवल जल, मध्यम भागमें जल तथा वायु और नीचे के भागमें मात्र वायु विद्यमान है। उन पातालोंके तीन भागों में से मध्यका जल-वायुवाला त्रिभाग पहले भाग ( नीचे ) के पवनसे ( प्रेरित हुबा ) चलाचल होता है । ऊपरके भाग में पवनका प्रभाव होनेसे केवल जल रहता है ।। २४६०-२४६१ ।। विशेवावं :- शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष में सवरणसमुद्र के जलकी वृद्धि हानिमें मध्यम भागनें स्थित जल और वायुका चंचलपना ही कारण है । १.द.म.क.ज. प. उ. मम । २. प. व. क. ज. म. न. मायाणं ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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