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________________ ६५६ ] तिलोयपगती [ गाया : २४५६-२४५७ म :- ज्येष्ठ और मध्यम पातालोंके अन्तराल-प्रमाणसे जघन्य पातालोंके मुख-विस्तार तिरसठयथात एकसारब्बासका भाग मधन्य पातालोंका अन्तराल होता है। उसका प्रमाण सातसो अट्ठानवे योजनोंसे अधिक है ॥२४५४-२४५५।। काकम करक विरोषाचं :-उपर्युक्त गापामें ज्येष्ठ मौर मध्यम पातालका अन्तराल ११३.८५ योजन प्रौर कोस कहा गया है । ज्येष्ठ और मध्यम पातालोंके प्रत्येक अन्तरालमें १२५-१२५ जपन्य पासाल है। इनका मुख व्यास १०० योजन प्रमाण है अतः १२५ x १००-१२५०० पोषन मुख विस्तारको ११३०६५ यो०. है कोस मेंसे घटाकर ( ११३०८५ यो० - १२५००=१००५ यो ) सम्मको १२६ ( ज्येष्ठ पाताल + म०पाताल १ + ज. पातास १२५ = १२७ पातालोंके अन्तराल १२६ ही होते हैं ) से भाजित करने पर जघन्य पातालोंके अन्तरालका प्रमाण ७६ itयो. पर्यास् ७६८ योजन और २३७३ मनुष प्राप्त होता है। प्रत्येक पातालके विभाग एवं उनमें स्थित पायु तथा बलादिका प्रमाण पत्तक्क पायाला, ति - वियप्पा से हवंति कमदोगं । हेद्वाहितो बाई, जलवावं सलिलमासेम् ॥२४५६।। भ:-प्रत्येक पाताल क्रमश: जल, जल प्रोर मासु तथा नीचे वायुफा प्राश्रम सेकर तीन प्रकारसे विद्यमान है ।।२४५६।। सेसीस-सहस्साणि, ति - सया तीस जोयग-ति-भागो। पत्तेक द्वाण पमाणमेचं तिसस्स ॥२४५७॥ ¥ } } पर्ष:-ज्येष्ठ पातालोंमेंसे प्रत्येक पातालके तीसरे भागफा प्रमाण संतीस हजार तीनसी तैंतीस योजन और एक योजनका तीसरा भाग ( ३३३३३६ योजन ) है ॥२४५७।। बिशेवा:-सवरणसमुदकी चारों दिशामोंमें एक लाश योजन ऊंचाई वाले पार ज्येष्ठ पाताल हैं। ऊंचाईकी अपेक्षा इनके तीन भाग करनेपर ( 222942 ) ३३३३३१ योजनमें वायु, ३३३३३३ योजनमें वायु एवं जत मोर ३३३३३३ योजनमें मात्र जल विद्यमान है।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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