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________________ गाया : २४५२-२४ आत्मा कॉट [ ६५५ विशेषाचं :- [ ६४८६६३ - ( १०००x४ ) ] + ४ = २३६१७०१ योजन एक मध्यम पातालसे दूसरे मध्यम पातालके मुखके अन्तरका प्रमाण है । ज्येषु पातालोंसे मध्यम पातालोंके मुझोंका असर जेनंतर संखावो, एक्क सहस्वम्मि समवनोदस्मि । ममिया च विचा ||२४५२ ॥ अक्ष कवे अट्ठार्ण, · - जोयण लक्वं तेरस सहस्सया पंचसीवि - संजुता । तं विचाल - पमार्ग, दिवss - कोसेप अविरितं ॥ २४५३ || ११३०८५ | को ३ । वर्ग:- ज्येष्ठ पाताखोंके अन्तराल - प्रमाण में से एक हजार (१०००) कम करके आधा करनेपर ज्येषु और मध्यम पातालोंका अन्तराल - प्रमाण निकलता है जो एक लाल तेरह हजार पचासी योजन मोर डेठ फोस अधिक है ॥१६४५२-२४५३ ।। - - - विशेवार्थ :--- पूर्व, दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशागत ज्येष्ठ पातालोंके मुखसे मुखका अन्तर २२७१७०१ योजन है। इसमें विदिशागत मध्यम पातालका मुख व्यास १००० योजन घटाकर भाषा करनेपर दिशागत ज्येष्ठ पाताल और विदिशागत मध्यम पातालों के मुखसे मुखका अन्तर प्राप्त होता है। यथा - ( २२७१७०३ यो० १००० यो० ÷२ = ११३०६५ योजन और १३ कोस । जवन्य पासालसे जघन्य पातालके मुखका मन्तर जाम मक्झिमाण', 'मिम्मि जहल्लयाण मुह-बासं । फेडिय' सेसं विगुणिय तेसट्टीए कम विभागे ।। २४५४ ॥ M - जं लक्ष अवराणं, पायालाग तमंतरं होदि । सं मा सत सया, प्राणउदो थ सविसेसा ।। २४५५ ।। ७६८ ।। १. म. विपि। २.१. बाज. उ. पेसिन व मैलिय ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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