SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 681
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५४ ] तिलोमपाती [ गापा : २४४६-२४५१ लवण समुद्रकी मध्यम परिधिका प्रमाण - णव-सक्ख • जोयगाई, अग्वाल सहस्स-छस्सया पि । तेसोबी प्रषिपाई, सायर-मनिमन्त-परिहि परिमार्ण ॥२४॥ १४८६५३ । :-लवणसमुद्रको मध्यम परिघि नौ लाख अड़तालीस हजार छहसो तेरासी (१४६८३ ) योजन प्रमाण है ॥२४४६।। विरोवार्ष:- सवरणसमुद्रका मध्यम सूची व्यास ३ लाख योजम प्रमाण है । गामा के नियमानुसार परिधि का प्रमाण NX १०८६४८९८३ पो. परिधि । म यो अवशेष वषे बो। छोड़ दिए गये। म्येष्ठ पातालोंका मन्तरालसत्तावीस - सहस्सा, सरि - जुत्तं सवंबे - समसा । .. जोयण - ति • उम्भागा, मेवाण होरि विश्वास ॥२४५०॥ २२५१७ ।। अर्थ:-ज्येष्ठ पासालोंके बीच-बीचका अन्तराल दो लाख सत्ताईस हजार एकसी सत्तर और एक योजनके चार भागोंमेंसे तीन भाग ( २२७१७० योजन ) प्रमारा है ॥२४५०।। विशेचा :-लवणसमुद्रकी मध्यम परिधि [ १४८६८५-(१०.००x४) ]:-४= २२७१७० योजन एक ज्येष्ठ पातालसे दूसरे ज्येष्ठ पासालके नुसके अन्तरका प्रमाण है। मध्यम पातालोंका अन्तरालछत्तीस - सहस्साणि, सत्तरि - संसय दुबे लपला । जोपण - ति • धरम्मागा, मरिझमया - विमासं ॥२४५१॥ २३६१७०1। पर:-मध्यम पातालोंका अन्तराल दो लास छत्तीस हजार एफसी सत्तर और एक योजनके पार भागोंमेंसे तीनभाग ( २३६१७०३ पो०) प्रमाण है ।।३४५१॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy