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गाथा : १३६-१४२ J
उत्यो महाहवारी
विद्याषरोंका वर्णन
'वेवकुमार सरिच्छा, बहुविह-विजाहि संजुदा पदरा ।
बिहरा मणस्सा, पाक: सोशाय
तिसवा
छ
१६
:--उल नगरोंमें रहनेवाले उत्तम विद्याधर मनुष्य देवकुमारोंके सहा अनेक प्रकारकी विद्यायो संयुक्त होते हैं और सदा छह कर्मोंसे सहित हैं ।। १३६ ।।
विसेवार्थ:- वे विद्याधर मनुष्य देवपूजा, गुरु-उपासना, स्वाध्याय, संयम तप और दान इन छह कमसे युक्त होते हैं तथा अनेक विद्याओंके मधिपति होकर प्रपनो विद्याधर संज्ञाको सायंक करते हैं ।
अच्छर सरिच्छ हवा, अहिणव लावण्ण- दोसि रमणिया ।
विज्जाहर वणिसाओ, बहुविह बिज्जा समिद्धाओ ॥ १४० ॥
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वर्ष :- विद्याधरोंकी वनिताएँ अप्सरालोके सहया रूपवती, नवीन लावण्य युक्त, दीप्तिसे रमणीय और अनेक प्रकारकी विद्याओंसे समृद्ध होती हैं ।। १४० ।।
फुल-जाई बिज्जाओ, साहिय बिज्जा अनेय-मेयामो
विज्जाहर पुरिस पुरंधियाच' बर-सोमल मनजीओ ॥ १४१ ॥
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अर्थ :- अनेक प्रकारको कुल विद्याएँ, जाति-विद्याएं और साधित विद्याएँ विद्याधर पुरुषों एवं पुरंधियों ( विद्यार्घारियों ) को उत्तम सुख देनेवाली होती हैं ।। १४१ ।।
विद्याधरकी श्रेणियोंका एवं उनपर निवास करनेवाले देवोंकर वर्णन -
रम्मुजाहि जुदा होंति हु बिनाहराण लेडीओ । जिणभवण सूसिवाओ को समरूद वणिषु समलं ॥ १४२ ॥
प्रय:- विद्याधरोंको श्रेणियाँ रमणीय उद्यानोंसे युक्त हैं और जिन्दभवनोंसे भूषित हैं। इनका सम्पूर्ण वर्णन करनेमें कौन समर्थ हो सकता है ? ।। १४२ ।।
१. . . . च बेबकुमार सरियो ।
... . ज. पुरंबियाप पूरे विमार ।