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________________ तिलोयपण्णत्ती [ गाधा १३४-१३८ धर्म :- वन खण्डपी वस्त्रसे सुशोभित, वेदिकारूप कटिसूत्रसे कान्तिमान् तोरणरूपी कणसे युक्त, विद्याधरोंके राजभवन रूप मुकुटोंको धारण करने वाले, मणिगृहरूप कंठाभरणसे विभूषित, चंचल हिटोलेरूप कुण्डलोंसे युक्त और जिनेन्द्रमन्दिररूपी तिलकसे संयुक्त विद्याधरनगररूपी राजा प्रत्यन्त शोभायमान हैं ।। १३२-१३३ । ४] अर्थ :- नगरके बाहरी विशाल प्रदेश प्रफुल्लित कमल वनों, वापी समूहों तथा उद्यानवनसे मंडित होते हुए शोभायमान हैं ।। १३४ ।। marta भाषण श्री सुविधा कल्हार-कमल- कुवसेय कुमुदुज्जलजलाह हत्या । विम्ब सडाया बिजला, तेसु पुरेसु बिरायति ॥ १३५॥ 'फुल्लिव-कमल-वह बायो-रिवएहि मंडिया बिउला । पुर-बाहिर भाना, उमाण - वर्णोह रेहति ।। १३४|| अर्थ :- उन नगरों में कल्हार, कमल, कुवलय और कुमुदोंसे उज्ज्वल, जलप्रवाहसे परिपूर्ण अनेक दिव्य तालाब शोभायमान है ।११३५ ॥ । सालि-जमनाल - तुबरी-तिल-जब गोभ मास-पट्टवीहि सतहि भरिवाह, पुराइ सोर्हति सुमीहि ।। १३६ ।। अर्थ :- शालि, यवनाल ( जुवार ) तूबर, तिल, जो गेहूँ और उदय इत्यादि समस्त उत्तम धान्यों से परिपूर्ण भूमियों द्वारा वे नगर पोभाको प्राप्त होते हैं ।। १३६ ।। י हि पंचमराय । · बहुबिब-गाम-सहिश विरुव महामट्टणेहि रमनिज्जा कम्बोजमुहि, संवाह नवंबएहि परिपुष्णा ॥ १३७॥ - ▾ रमजान "आयरे, 'विहसिया "पउमराय पहुदीचं । विश्व-नरेहि पुष्णा, धन धन समिति रम्मे ॥ १३८ ॥ - - · अर्थ:- वे विद्याधरपुर बहुतसे दिव्य ग्रामों सहित विष्य महापट्टनों से रमणीय करंट, द्रोणमुख, संवाह, मटंब और नगरोंसे परिपूर्ण; पद्मरागादिक रत्नोंकी खानोंसे विभूषित तथा घनधान्यको समृद्धिसे रमरणीय है ।।१३७-१३८ ।। L १. द. न. ग. ज. प. उ. पुदि २.क.ज. उ. पत्रहरणाय विद्यते । ५. क.ज. प. उ. पापाहि । ६. क.प.उ. चिसि । द.न.क. प. प. उ. यह ४. ६.व. ७. ५. . . . प. उ.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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