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गाथा : १२९-१३३ ] मोवाहाहियाताई
[Part “अक्षोभ, ५ गिरिशिखर, "घरणी, "धारिणी, "दुर्ग, "दुर्ब र, भुदर्शन, "रत्नाकर और
रत्नपुर ये साठ नगरियां उत्तरश्रेणीमें हैं, जो विजयादकी लम्बाईमें पंक्तिबद्ध स्थित ई॥१२१-१२८॥
__ विद्याधर नगरांका विस्तृत वर्णनविजाहर-जयरवरा, अणाइ-बिहणा सहावणिप्पण्णा ।
णाणाविह-रयणमया, गोउर-पायार-तोरणादि-सुवा ।।१२।।
प्रपं: - अनेक प्रकारके रलोस निर्मित गोपुर, प्राकार (परकोटा) और तोरणादिसे युक्त विद्याधरोंके वे श्रेष्ठ नगर अनादिनिधन और स्वभाव सिद्ध है ।।१२।।
चम्मरम-वग-समिशा, पोक्खरणी-व-विग्घिया-सहिदा ।
धुष्यत'-अय-वज्ञापा, पासावा ते च रयणमया ॥१३०।।
मई:-रत्नमय प्रासाद वाले वे नगर उद्यान-बनोंसे संयुक्त हैं और पुष्करिणी, कूप एवं दीपिकामों तथा फहरातो हुई ध्वजा-पताकानोसे सुशोभित हैं ।।१०।।
मानाबिह-जिणगेहा, विजाहर-पुर वरेसु रमणिया ।
वर - रवण • कंचनमया, 'ठाण • हरणेसु सोहंसि ॥१३॥
मय:-उन श्रेष्ठ विद्याधर नगरों में स्थान-स्थान पर रमणीय, उत्तमरत्नमय और स्वर्णमय नानाप्रकारके जिनमन्दिर शोभायमान है ।।१३।
वरणसंड-वस्थ-सोहा, 'वेदो-कारसुत्तएहि कंतिल्ला । तोरण-कप-बुत्ता,विजाहर-राय-भषण-पउडमरा" ।।१२।। मणिगिह-कंठाभरणा, बलंत-गेल - कुंडलेहि बुदा । जिणवर - मंदिर - तिलया, जयर-परिवा विराति ॥१३३॥
..-- - - -.- .. - . १.प. ब. क. उ. शुम्स्तरमवाय, ज. स. पुष्माण्यवसाया। ३. ८. स. म. न. साण । ३. द. बेदी वति। ५. द. कंघण। १, इ.स. क. प. य. र. मोरयाए।