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________________ ६५२ ] तिलोयपग्णत्ती [ गाया : २४४६-२४४७ पर्ष :--पृषक-पृथक दोनों किनारोंसे निन्यानबे हजार पाच-सी (२६५००) योजन प्रमाण जसमें प्रवेश करनेपर मध्यम पाताल हैं ||२४|| जघन्य पातालोंका निरूपणजहाग - मनिझमाणं, विज्चालेसु जहण - पायाला । पह पृह पण-धन-माणा, मम्भिम-बस-भाग-बावी ।।२४४६।। १००। १००।१००० । १०००।५। मर्ष :-उस्कृष्ट और मध्यम पातालोंके रीच-बीच में अपन्य पातान स्थित है। प्रत्येक अन्तरालमें इनका पृथक्-पृथक् प्रमाण १२५-१२५ है। इनका विस्तारादिक मध्यम पातालोंकी अपेक्षा दसवें भाग प्रमाण है ।।२४४६॥ विशेषाय :-उस्कृत पाताल ४ हैं और मध्यम पाताल भी ४ है। इनके बीच-बीच में - अन्तराल हैं। प्रत्येक मन्तरालमें १२५-१२५ जघन्य ( १२५४५-१००० ) पाताल स्थित हैं । इनका मूल विस्तार १०० योजन, मुख विस्तार १०० योजन, ऊँचाई १... योजन, मध्य विस्तार १००० योजन और मोटाई ५ योजन प्रमाण है। वणउदि-सहस्साणि, गव-सम-पण्णास-बोयणाणि सहा । पह पुह - ताहितो, पर्विसिय बेटुति भवरे वि ॥२४४७॥ tterol मर्ष:-पृथक्-पृथक् दोनों किनारों से निन्याननै हजार नौ सौ पचास ( EEE५. ) योजन प्रमाण (जसमें) प्रवेश करनेपर जघन्य पाताल स्थित है ॥२४४७॥ नोट :-तीनों प्रकारके पातालोंको स्पष्ट स्पिति लवणस मुझके निम्नास्ति चित्रण द्वारा मातम्य है [ चित्र अगले पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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