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________________ ६५. ] तिलोयपणासी गापा : २४४२-२४४३ :- दोनों किनारोंसे लवणसमुसके जल में पंचानब हमार { ९५००० ) योजन प्रमाए प्रवेश करनेपर पृषक पृथक ये चार पाताल स्थित हैं ।।२४४६।। पुह - पुह मूलम्मि मुहे. पिरमारो जोयणा वस-सहस्सा । उदनो वि एक - लपलं, मझिम • ६ वि सम्मेतं ।।२।४२।। ००००००००1१स। । प:-( इन ) पातालोंका पृषक-पृथक् मूल विस्तार दस-हजार ( १०...) योजन, मुख विस्तार दस हजार १०००.) योजन, ऊंचाई एक लाख योजन और मध्यम विस्तार भी एक लाख योबन प्रभारण हो है २४४२।। जेडा ते संसगा, सीमंत - बिलस्स उरिमे भागे । पण - सय - सोयण - बहला, करना एगण बजमया ।।२४४३॥ :-वे ज्येष्ठ पाताल सीमन्त बिलके उपरिम भागसे संलग्न हैं। इनकी वजमय मित्तियां पारसौ (५०. ) योजन प्रमाण मोटी हैं ॥२४४३|| विशेषार्थ :-रत्नप्रभा नामकी अपम पृथिवी एक लाख अस्सी हजार { १८०००) योजन मोटी है। इसके सर, पौर प्रमहल नाम वाले सोन भाग है जो क्रमशः १६...,८४००० और ..... योजन बाहल्यवाले हैं । लवणसमुद्रकी मध्यम-परिभिपर जो चार ज्येष्ठ पाताल है मन्महुल भागपर स्थित सीमन्तक बिलके उपरिम मापसे संलग्न हैं और इनसे चित्रा पृथिवी पर्यन्तनी ऊँचाई ( पंकभाग ५४००० यो+सरभाग १६००० यो ) एक साथ योजन है। इसीलिए ज्मेष्ठ पातालोंकी ऊंचाई एक-एक लाख योजन कही गई है। इन पातालोंकी वषमय भितिया ५००-५०० योजन मोटो है। [ चित्र अगले पृष्ठ पर देखिये ]
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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