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________________ ६४८ ] तिलोयपणती [ गापा : २४३५-२१३७ अपरिम जसको क्षय-वृद्धिका प्रमाणउरिम-जलस्त जोयण, उगबोस-सयागि सत्त-हारिवाणि । लय - पड्डोग पमा, नार लग - अलहिम्मि ॥२४॥ प:--लवणसमुद्र में उपरिम ( तटोंसे मध्यकी और और मध्यसे सटोंकी परेर ) जलको मय-कृषिका प्रमाण सातसे माषित बन्नीससी योजन है । प्रात् समतल भूमिसे जसकी हानि-वृद्धिका प्रमाण २७१० योजन है ।।२४३५१1 समुद्रतटसे ६५००० यो० भीतर प्रवेश करने पर वहां जलको गहराई और पाईका प्रमाण पत्ते -सगो, परिसिय पनगरि-बोयग-सहसा । पाठा सस्त सहस्स, एवं सोधिमा मंगलागी ।।२४३६।। Ex.00 । १००० । वर्ग:-दोनों तटोंमेंसे प्रत्येक किनारेसे पंचानवे हजार १६५००.) योजन प्रवेश करनेपर उसकी गहराई एक हजार ( १००० ) योजन प्रमाण है । इसीप्रकार अंपुलादिक श्रोध सेना चाहिए ॥२४३६॥ विरा-लवणसमुद्रके प्रत्येक तटसे ६५००० योजन प्रवेस करने पर वहाँ जसको गहराई १००० योजन प्राप्त होती है । तब एक योजन प्रवेश करनेपर कितनी गहराई प्राप्त होगी? इसप्रकार राक्षिक करनेपर ४ धनुष, १ वितस्ति, १ पाद और २ अंगुल प्राप्त होते हैं । अर्थात् समुद्र में एक योजन प्रवेश करनेपर वहाँ जलकी गहराई मा योषन अपवि ८४ धनुष, • रिक्कू, • हाग, १ वि०, पाद पोर २अंगुल प्राप्त होगी। पुतमायो जस-मम्झ, पविसिय पनगरि-बोयण साहला । सत्त - सयाई उबमओ, एवं सोहेब' अंगुलावी ॥२४३७।। ६५००० । ७.०।६।' --- - - ...ब. ५। २. ब. साहेप, क. प. य. 3. मोहाय । ..... उ. 2001 .
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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