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________________ गाथा : २४३२-२४३४ ] उस्यो महाहियारो [ ६४७ पत्तक्क वु-तो, मनिसिय पणादि योग का EXPER गाडे तम्हि सहस्सा, सलवासो इस सहस्साणि ॥२४३२॥ ६५०००1१५००० । १०००० । अर्थ:-दोनों तटोंमेंसे प्रत्येक तटसे पवान हजार ( २५.००, ६५.०० ) योजन प्रवेश करनेपर उसकी एक हजार पोजन गहराईपर तल-विस्तार दस हजार (१००००) योजन प्रमाण है ।।२४३२॥ हानि-वृद्धि एवं भूयास मोर मुख-प्यासका प्रमाणभूमीअ मुहं लोहिय, उदय • हिदं भू-महाउ-हाणि-चया । मुहमजुर्व में लाला, भूमी जोयन - सहस्समुस्सेहो ।। २४३३॥ १०००० । २०.०००। १००० । म :-भूमिमेंसे मुखको कम करके ऊंचाईका भाग देनेपर भूमिको मोरसे हानि पौर मुखकी ओरसे वृद्धिका प्रमाण पाता है। यहाँ मुखका प्रमाण मयुत अर्थात् दस हजार ( १००० ) योजन, भूमि-का प्रभाग दो लाख योजन और अलकी गहराईका प्रमाण एक हजार (१...) पोजन है ।।२४३३।। विस्तारका प्रमाण ज्ञात करनेको विधिरहम-बढ़ीण पमाण, एमक-समं बोयणाणि गावि-सुदं । इन्का-हा-हाणि-चया, खिदि • होणा मह - जुदा हो ॥२४३४॥ १६. । पर्ष :-उस क्षय-वृद्धिका प्रमाण एफसो मन्ये (१६०) योजन है । इच्छासे गुरिणत हानिवृद्धि प्रमाणको भूमिमेंसे कम अपवा मुख में मिला देमेपर विवक्षित स्थानके विस्तारका प्रमाए बाला नाता है ।।२४३४॥ { २००००० - १०...) १००-१६० हानि-वृद्धिका प्रमाण । २. द... क. ज. प. उ. सहस्सो ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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