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गाया । २३१३-२३१८ ]
उषो महाहियारो
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:-शिखरीपर्यंत उत्तर और जम्बुद्वीपकी जगतीके दक्षिणभागमें भरत क्षेत्र के सदृश ऐरावतक्षेत्र स्थित है ॥२३१२१
वरि विसेसो तस्स', सलाग परिसा हवंति जे केई । ताणं नाम
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अर्थ :- विशेष यह कि उस क्षेत्र में जो कोई शलाका-पुरुष होते हैं उनका नामादि विषयक उपदेश इस समय नष्ट हो चुका है || २३६५॥
अण्णा एसि, नामा विजय कूड-सरिया
सियो' रेवद लंडो, मारणी बिजय
पुष्णा
पहुविसु, उबदेसी संपइ पराट्ठी ॥ २३६३॥
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तिमिसगुहो रेवड- तेण नामागि होति गुजाण सिहरि-गिरिदोवरि महपुरिय दहस्स पुत्र बारे ॥ २३६५॥ रसा शामेण नदी, निस्तरिय पडेवि रस-कु डस्मि । गंगाजा सारिच्छा, पविसद्द सवर्ण
शसिम्मि ।।२३६६ ॥
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वर्ग:- इस क्षेत्र में विजयाषं पर्वत पर स्थित कूटों पोर नदियोंके नाम भिन्न हैं। सिद्ध ऐरावत, खण्डप्रपात, माणिभद्र, विजयावं, पूर्णभद्र तिमिस्रगुह, ऐरावत मोर श्रवणये नो कूट यहाँ विजया पर्वतपर है। शिखरी पवंतपर स्थित महापुण्डरीक द्रहके पूर्व द्वारसे निकलकर रक्ता नामक नवी रक्तकुण्डमें गिरती है । पुनः यह गङ्गानदी के सदृश सवगसमुद्र में प्रवेश करती है ।। २३९४ - २३१६ ।।
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सद्दह पच्छिम तोरा बारेण जिस्मरेवि रसोदा ।
सिंधु
पईए सरिसा, शिवकवि
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रतोव कुंडल्मि ||२३६७।। प्रणेयसरि सहिया ।
परम- मुहे तत्तो, णिस्सरिण श्री जगदी बिलेग, लवण समुहम्मि पनिसेवि ॥ २३६८ ||
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।। २३६४॥
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धर्म :- उसी के पश्चिम तोरण द्वार से रक्तोदानदी निकलती है और सिन्धुनदीके सहम रक्तोदकुण्ड में गिरती है । पश्चात् वह उस कुण्डसे निकलकर पश्चिममुख होसी हुई अनेक नदियोंके साथ जम्बूद्वीपको जगतोके बिलसे लवणसमुद्रमें प्रवेश करती है ।।२३६७-२३९८ ।।
९. प. म. व उ. स्मि । २. व. ब. क. द. एवेति । १. द. व .नं. सरिशलं । ४. ६.ब.ज. प. च सिद्धा.ब.रु. व. रतो ।