SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 661
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पामा ६३४ ] तिलोमपणासी [ गाथा । २३८७-२३९२ दर्शक :: NAMRATARRA-सहरम्मि। पउमद्दह • सारिन्छो, बेवो - पहहिं कय - सोहो ॥२३८७॥ मर्म :-इस शिखरी शेलके शिखरपर पपके सहश वेदो आदिसे शोभायमान महापुण्डरीक नामक दिव्य द्रह है ।।२३८७।। तस्स 'सयवस-भवणे, ललिप - णामेण शिवसने देखी। सिरियेवीए सरिसा, ईसाणिवस्स सा यी ॥२३८॥ म :-उस तालाब के कमल-भवन में श्रीदेवीके सदृश जो लक्ष्मी नामक देवी निवास करती है, वह ईशानेन्द्रकी देवो है ।।२३८८1। तहह-पिसण-तोरग-दारेण सुषणफूल - गाम - गवी । णिस्तरिय बक्षिण-मुही, गिषडेवि सुवणकूल-कैडम्मि ।।२३८६॥ तद्दग्लिम - दारेणं, पिस्सरिवून प दक्षिण-मुही सा। पाभिरि कादण', पराहिण रोहि • सरिय च ।।२३६०।। हेरण्णवदरभंतर • भागे गन्छिय हिसारण पुवाए। बोय - जगदी - बिले, पबिसेंदि तरंगिणी • रवाहं ॥२३६॥ । एवं सिहरिगिरि-वष्णणा समता' । ए' :-उस द्रहके दक्षिण-तोरणद्वारसे निकलकर मुवर्णकूला नामक नदी दक्षिणमुखी होकर सुवर्णकूल-कुण्डमें गिरती है । तत्पश्चात् उस कुण्डके दक्षिण-दारसे निकलकर वह नदी दक्षिणमुखी होकर रोहित नदीके सदृश नाभिगिरिको प्रदक्षिणा करती हुई हरण्यक्तक्षेत्रके सम्पन्तर भागमेंसे पूर्व दिशाकी ओर जाकर जम्बूद्वीप - सम्बन्धी जगतीके बिलमेंसे समुनमें प्रवेश करती है ॥२३८६-२३६१॥ । इसप्रकार शिखरीपर्वतका वर्णन समाप्त हुआ । ऐरावतक्षेत्रका निरूपणसिहरिस्सचर - भागे, अंबूदीवस जगवि - वापिसनदो। एरावयो ति बरिसो, बेदि भरहस्स सारिन्छो ।।२३९२॥ १.ब. क. उ. पक्तानुभवणे, ज. प. पवक्तसु भवणे, इ. यवत्ताषणे । २..... य. स, सम्मा ।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy