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पामा
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तिलोमपणासी
[ गाथा । २३८७-२३९२ दर्शक :: NAMRATARRA-सहरम्मि।
पउमद्दह • सारिन्छो, बेवो - पहहिं कय - सोहो ॥२३८७॥
मर्म :-इस शिखरी शेलके शिखरपर पपके सहश वेदो आदिसे शोभायमान महापुण्डरीक नामक दिव्य द्रह है ।।२३८७।।
तस्स 'सयवस-भवणे, ललिप - णामेण शिवसने देखी।
सिरियेवीए सरिसा, ईसाणिवस्स सा यी ॥२३८॥
म :-उस तालाब के कमल-भवन में श्रीदेवीके सदृश जो लक्ष्मी नामक देवी निवास करती है, वह ईशानेन्द्रकी देवो है ।।२३८८1।
तहह-पिसण-तोरग-दारेण सुषणफूल - गाम - गवी । णिस्तरिय बक्षिण-मुही, गिषडेवि सुवणकूल-कैडम्मि ।।२३८६॥ तद्दग्लिम - दारेणं, पिस्सरिवून प दक्षिण-मुही सा। पाभिरि कादण', पराहिण रोहि • सरिय च ।।२३६०।। हेरण्णवदरभंतर • भागे गन्छिय हिसारण पुवाए। बोय - जगदी - बिले, पबिसेंदि तरंगिणी • रवाहं ॥२३६॥
। एवं सिहरिगिरि-वष्णणा समता' । ए' :-उस द्रहके दक्षिण-तोरणद्वारसे निकलकर मुवर्णकूला नामक नदी दक्षिणमुखी होकर सुवर्णकूल-कुण्डमें गिरती है । तत्पश्चात् उस कुण्डके दक्षिण-दारसे निकलकर वह नदी दक्षिणमुखी होकर रोहित नदीके सदृश नाभिगिरिको प्रदक्षिणा करती हुई हरण्यक्तक्षेत्रके सम्पन्तर भागमेंसे पूर्व दिशाकी ओर जाकर जम्बूद्वीप - सम्बन्धी जगतीके बिलमेंसे समुनमें प्रवेश करती है ॥२३८६-२३६१॥
। इसप्रकार शिखरीपर्वतका वर्णन समाप्त हुआ ।
ऐरावतक्षेत्रका निरूपणसिहरिस्सचर - भागे, अंबूदीवस जगवि - वापिसनदो। एरावयो ति बरिसो, बेदि भरहस्स सारिन्छो ।।२३९२॥
१.ब. क. उ. पक्तानुभवणे, ज. प. पवक्तसु भवणे, इ. यवत्ताषणे । २..... य. स, सम्मा ।