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गाषा : २३८२-२३८६ ] पस्थो महाहियारो होहित नदीके सदृण नामिगिरिको प्रदक्षिणा करके पश्चिमको और जाती है। पुनः परिवार नदियोंसे संयुक्त होकर वह नदी जम्बूद्वीपको जागतीके बिलमें होकर लवणसमुद्र में प्रवेश करती है॥२३७१-२३८१।।
। हरण्यवतक्षेत्रका वर्णन समाप्त तथा ।
शिखरोगिरिका निरूपणतग्विज-उत्तर-भागे, सिहरी - गामेण चरम - कुलसेलो। हिमवतस्स सरिज्छ, समलं चिय बनर्ग तस्स ॥२३०२॥
:- इस क्षेत्रके उत्तर भागमें शिखरी-नामक अन्तिम कुल-पर्वत स्थित है। इस पर्वतका सम्पूर्ण वर्षन हिमवान् पर्वतके सहण है ॥२३८२।।
सरि बिसेसो फूडहाण' वाण देखिल सरियाषATE : अन्नाई पामाई तत्ति सिमो पढम - फूडो ॥२३८३॥ सिहरो हेरण्पवयो, रसदेवी - रत्त • लच्छि-कंधगया । रत्तवदो गंषवदी, रेवव · मणिकंच कूळ ॥२३५४॥ एपकारस - काणं, पाह मुह पणुवीस मोयथा उबयो । तेसु पढमे करें, जिणित - भवण परम • रम्मं ॥२३८५।। सेसेस करेस, गिय - णिय - कुरान गाम - संजुत्ता ।
बेतर • देवा मणिमय • पासावखु विराति ॥२३८।।
म :-विशेष यह है कि यहां कूट, द्रह, देव, देयो और नदियोंक नाम भिन्न हैं । उस (शिखरी) पर्वतपर प्रथम सिद्ध कूट, शिखरो, हैरप्पवत, रसदेवी, रक्ता, लक्ष्मी, कामन, रक्तवती. गन्धवती, रेवत ( ऐरावत ) पौर मरिणकाश्मनकूट, इसप्रकार रे ग्यारह कूट स्थित हैं। इन ग्यारह कूटोंकी ऊंचाई पृथक्-पृषक पच्चोस योजन प्रमाण है । इनमेंसे प्रथम कूटपर परम-रमणीय जिनेन्द्रभवन और पोष कूटोंपर स्थित मणिमय प्रासादोंमें अपने-अपने कूटोंके नामोंसे संयुक्त व्यन्तर देव विराजमान है ॥२३५३-२३८६।।
१. प. प. क. न. कहामि, व. म. काहादि । २. य. ब. क. य... करो।