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________________ ६३२ तिलोय पण्णी [ गाथा २३७७-२३८१ हरित् नदीके सदृश हो नाभिगिरिको प्रदक्षिणा करके रम्यक- भोगभूमिके बहुमध्यभागमेंसे पूर्व की ओर जाती हुई परिवार नदियोंसे युक्त होकर लवणसमुदमें प्रवेश करती है ।। २३७४-२३७६।। ॥ रुक्मिपर्वतका वर्णन समाप्त हुआ ।। हैरण्यवत क्षेत्रका निरूपण - जिओ हेरन्गवदो, हेमवदो व प्पवण्णा जुहो' 1 वरि एक्को, परी प्र:- हैरण्यवत क्षेत्र हैमवतक्षेत्र के सदृश वर्णनसे युक्त है। एक विशेषता केवल यही है कि यहाँ नामिगिरि और नदियोंके नाम भिन्न हैं ।।२३७७१। होदि संतो तरस बहू - मज्झ भागे, विजय तस्सोबरिम पिके, पभास चामो ठिवो देवो ॥२३७८ ॥ · - अर्थ :- उस क्षेत्रके बहुमध्य भागमें गन्धवान् नामक विजयार्थ ( नाभिगिरि ) है । उसपर स्थित भवनमें प्रभास नामक देव रहता है ।। २३७८ ।। पुंडरिव वहतो, उत्तर हारेण रुम्पकूल - नई निस्सरिपूर्ण - - - - - तस्सुत्तर दारेगं णिस्सरिपूर्ण च उत्तर जाभिगिरि काढूणं, पदाहिणं रोहि 11239011 - निवडब, कुडे सर रूप्पलम् ॥ २३७६ ॥ · पच्छिम मुहेग गच्छिय, परिवार तरंगिणीहि संवृत्ता । वीद जयदी बिलेणं, पवितदि कल्लोलिनी मुही सा । सरिय व्व ॥ २३८० ।। नाहं ॥। २३८१॥ । हेरण्णवद-विजय वमना समचा । वर्ष :- रूप्यकूलानदी पुण्डरोक दहके उत्तर-द्वारसे निकलकर रूप्यकूल नामक कुण्हमें गिरती है । तत्पश्चात् वह नदी उस कुण्डके उत्तर-द्वारसे निकलकर उत्तरकी ओर गमन करती हुई ...क.म.प.उ. दुसा २, द बेभीए ब. क. प. देवभीए । उ. कस्मोhिf ग्राम । ३. . . . व. य.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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