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तिलोय पण्णी
[ गाथा २३७७-२३८१
हरित् नदीके सदृश हो नाभिगिरिको प्रदक्षिणा करके रम्यक- भोगभूमिके बहुमध्यभागमेंसे पूर्व की ओर जाती हुई परिवार नदियोंसे युक्त होकर लवणसमुदमें प्रवेश करती है ।। २३७४-२३७६।। ॥ रुक्मिपर्वतका वर्णन समाप्त हुआ ।।
हैरण्यवत क्षेत्रका निरूपण -
जिओ हेरन्गवदो, हेमवदो व प्पवण्णा जुहो' 1 वरि एक्को, परी
प्र:- हैरण्यवत क्षेत्र हैमवतक्षेत्र के सदृश वर्णनसे युक्त है। एक विशेषता केवल यही है कि यहाँ नामिगिरि और नदियोंके नाम भिन्न हैं ।।२३७७१।
होदि संतो
तरस बहू - मज्झ भागे, विजय तस्सोबरिम पिके, पभास चामो ठिवो देवो ॥२३७८ ॥
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अर्थ :- उस क्षेत्रके बहुमध्य भागमें गन्धवान् नामक विजयार्थ ( नाभिगिरि ) है । उसपर स्थित भवनमें प्रभास नामक देव रहता है ।। २३७८ ।।
पुंडरिव वहतो, उत्तर हारेण रुम्पकूल - नई
निस्सरिपूर्ण
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तस्सुत्तर दारेगं णिस्सरिपूर्ण च उत्तर जाभिगिरि काढूणं, पदाहिणं रोहि
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निवडब, कुडे सर रूप्पलम् ॥ २३७६ ॥
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पच्छिम मुहेग गच्छिय, परिवार तरंगिणीहि संवृत्ता ।
वीद जयदी बिलेणं, पवितदि कल्लोलिनी
मुही सा ।
सरिय व्व ॥ २३८० ।।
नाहं ॥। २३८१॥
। हेरण्णवद-विजय वमना समचा ।
वर्ष :- रूप्यकूलानदी पुण्डरोक दहके उत्तर-द्वारसे निकलकर रूप्यकूल नामक कुण्हमें गिरती है । तत्पश्चात् वह नदी उस कुण्डके उत्तर-द्वारसे निकलकर उत्तरकी ओर गमन करती हुई
...क.म.प.उ. दुसा २, द बेभीए ब. क. प. देवभीए । उ. कस्मोhिf ग्राम ।
३. . . . व. य.