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तिलोयपण्णत्तो
[ गापा : २३६६-२३७० गंतूणं सा मझ, रम्मक - विमएस्स पच्छिम - मुहेण ।
संमत्ता ।।२३६६॥ । रम्मक-विजयस्स पावणा समत्ता । प्रय:-केसरी द्रहके उत्तर तोरणदारसे निकली हुई दिव्य नरकान्ता नामक प्रसिद्ध नदी उत्तरको ओर गमन करती हुई नरकान्त-कुडमें गिरकर उत्तरकी ओरसे निकलती है। एमात् वह नदी पहले ही सदृश नाभिपर्वतको प्रदक्षिणा करके रम्यक संत्रके मध्यस जाती हुई पहिधम मुख होकर परिवार-नदियों के साथ लवरण समुद्र में प्रवेश करतो है ॥२३६४-२३६६॥
। रम्पकक्षेत्रका वर्णन समाप्त हुमा ।
रुक्मिगिरिका वर्णनरम्मक • भोगविदोए, उत्तर-भागम्मि होवि रुम्मिगिरी ।
महहिमवंत • सरिन्छ, सपलं विष मणं तस्स ।।२३६७।।
अपं:-रम्यक-मोगभूमिके उत्तरभागमें सक्मि-पर्वत है। उसका सम्पूर्ण-वर्णन महाहिमवानके सहषा समझना चाहिए ।।२३६७।।।
पवार य ताणं' फूड-बह-सुर-देवीण अण्ण - जामाणि । सिद्धो सम्मी - रम्पक • भरता - बुद्धि - इप्पो पि ॥२३६८।। हेरमवयो मनिकंचण : कूगे' एम्मियाग तहा ।
बाण इमा गामा, तेलु जिण मंदिरं पढम - कूरे ॥२३६९॥ सेसेस कूस, चतर - येवाण होति जयरीमो ।
दिक्खादा ते देवा, लिय - णिय • कूगण जोह ।।२३७०॥
मई:--विशेष इतना है कि यहां उन कूट, ब्रह, देव और देवियों के नाम भिन्न है । सिड, हमिम, रम्पक, नरकान्ता, बुद्धि, रूप्याला, हैरण्यवत और मणिकाञ्चन, ये परिमपर्वतपर स्थित उन पाठ कटोंके नाम है। इनमेंसे प्रथम कूटपर जिन-मन्दिर ओर शेष मूटोंपर व्यन्तरदेवोंको नगरिया है। वे देव अपने-अपने कुटोंके नामोसे विख्यात है ॥२३६८-२३७०।
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क. ज २. उ. रणाम । २. प. प. क. ज. य. वा. अशा प्पिया तहा बन्न ।