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________________ गाया : २३६१-२३६५ ] Tad चउत्यो अहिरो FARMEET * SATER [ ६२६ अपं:-उस देवीका सब परिवार पतिदेवीके सदृश ही शोभित है। यह देवी दस धनुष __ केवी और पनुपम सावण्यसे परिपूर्ण है ।।२३६०।। आविम-संठाग-गुवा, पर-रयण-विमूसणेहि विधिहहि । सोहिंद - सुपर • मुत्तो', सागिबस्स सा देवी ॥२३६१॥ । गोलगिरि-चम्गणा समता । मपं:-मादिम अर्थात् समचतुरम संस्थानवाली, विविध प्रकारके उत्तम रत्नोंके मृषणोंसे मुशोभित सौम्य-भूति वह ( कोतिदेवी ) ईशानेन्द्रकी देवी है ।।२३११॥ । इमप्रकार नीलगिरिका वर्णन समाप्त हुआ । रम्यक क्षेत्रका वर्णनरम्मक-विजओ' रम्मो, हरि-वरिसो 'वर-वाणा-कुत्तो। एपरि विसेसो एक्को, णाभि - जगे अण्ण - सामाणि ।।२३६२॥ wr:-रमणीय रम्यक-विजय (क्षेत्र) भी हरिवर्ष क्षेत्र के सदृश उत्तम वर्गनासे युक्त है। विशेषता केवल यही है कि यहाँ नाभिपर्वतका नाम दूसरा है । २३१२॥ रम्मक-भोग-खिदोए, बहु - माझे होवि पउम - गरमेण । पाभिगिरी रमणिकशो, णिय • रणाम • जहि वेवेहि ॥२३६३॥ प्रर्ष :-रम्यफ भोगभूमिके वहु-मध्यभाममें पपने नामवाले देयोंसे युक्त रमणीय पर नामक नाभिगिरि स्थित है ॥२३६३।। केसरि - वहस्स उत्तर - तोरण-दारेण णिवा विष्वा । परकंसा णाम पदी, सा गछिय उचर • मुहेण ॥२३६४।। परकंत-कु-मजो, जिवडिय हिस्सरवि उत्तर-बिसाए। सत्तो णाभि - गिरि, फादूण पदाहिन मि पुष ६ ॥२३६५॥ .. ... १. प. प. मूही, ब. क. प. उ. मूही। २. प. विजट्ठी, क. ज. स. विजयी, क. विरो। ई ... क... वि। . द. म. म. शिवलिन । ....
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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