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कर्मांक :- अभिसार २३५५-२३६०
नीलगिरि स्थित कूटोंका वर्णन
सिद्धक्लो नीलक्खो, पुष्ष विदेहो सिसोद-वित्तोश्रो ।
णारी प्रवर- विदेहो, रम्मक सामाववंसनो कूडो || २३५५ ।।
प्र:- सिद्धाख्य, नौलाख्य, पूर्व विदेह सोता, कीर्ति, नारी, पर- विदेह, रम्यक और पदर्शन, इसप्रकार इस पर्वतपर ये तो कूट स्थित हैं ।। २३५४ ।।
एस पढम कूडे जिंभिद भवनं विचित्त- रयणमयं ।
उच्छेह - पहुवीहि सोमणसि जिरणालय प्रमाणं ।।२३५६||
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सेसेसु कूडे जयसु
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- इनमें से प्रथम कूटपर सोमनसस्थ जिनालय के प्रमाण सहण ऊंचाई आदि वाले रत्नमय अद्भुत जिनेन्द्र भवन स्थित हैं ।। २३५६।।
तर विचित
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पासावा,
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अर्थ :- शेष कूटोंगर व्यन्तर- देवोंकी नगरिया हैं और उन नगरियोंमें विधिक रूपवाले अनुपम प्रासाद हैं ।। २३५७ ।।
देवाण होंति गयरीओ |
तर देवा सध्ये णिय नि कुडाभिधान-संजुता ।
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बहु परिवारा बस छष्णु तुंगा पहल
हवा जित्वमाणा ।।२३५७।।
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माणा ।।२३५८ ॥
अर्थ :- सब व्यन्तरदेव अपने-अपने कूटोंके नाम वाले हैं, बहुत परिवारों सहित है, दस धनुष ऊँचे हैं और एक पत्त्य प्रमाण भायुकाले हैं ।।२३५८ ||
कीतिदेवीका वर्णन
उरिम्मि गोल- गिरिलो, केसरिणामे वहम्मि विव्वम्मि ।
दि कमल - भवणे, देवी किति हि दिखावा ।।२३५६ ।।
:- नीलगिरिपर स्थित केसरी नामक दिव्य के मध्य में रहनेवाले कमल - भवनपर की ति नामसे विस्पात देवी स्थित है ।। २३५६।
विवि देवीय समाथो, तोए सोहेब सब्द परिवारो । दस चावाणि तुंगा, णिश्वम
लावण्य
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संपुष्ना ११२३६०॥