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________________ ६२६ } कर्मांक :- अभिसार २३५५-२३६० नीलगिरि स्थित कूटोंका वर्णन सिद्धक्लो नीलक्खो, पुष्ष विदेहो सिसोद-वित्तोश्रो । णारी प्रवर- विदेहो, रम्मक सामाववंसनो कूडो || २३५५ ।। प्र:- सिद्धाख्य, नौलाख्य, पूर्व विदेह सोता, कीर्ति, नारी, पर- विदेह, रम्यक और पदर्शन, इसप्रकार इस पर्वतपर ये तो कूट स्थित हैं ।। २३५४ ।। एस पढम कूडे जिंभिद भवनं विचित्त- रयणमयं । उच्छेह - पहुवीहि सोमणसि जिरणालय प्रमाणं ।।२३५६|| - सेसेसु कूडे जयसु - - : - इनमें से प्रथम कूटपर सोमनसस्थ जिनालय के प्रमाण सहण ऊंचाई आदि वाले रत्नमय अद्भुत जिनेन्द्र भवन स्थित हैं ।। २३५६।। तर विचित " पासावा, - - - 4 - अर्थ :- शेष कूटोंगर व्यन्तर- देवोंकी नगरिया हैं और उन नगरियोंमें विधिक रूपवाले अनुपम प्रासाद हैं ।। २३५७ ।। देवाण होंति गयरीओ | तर देवा सध्ये णिय नि कुडाभिधान-संजुता । · + बहु परिवारा बस छष्णु तुंगा पहल हवा जित्वमाणा ।।२३५७।। - - माणा ।।२३५८ ॥ अर्थ :- सब व्यन्तरदेव अपने-अपने कूटोंके नाम वाले हैं, बहुत परिवारों सहित है, दस धनुष ऊँचे हैं और एक पत्त्य प्रमाण भायुकाले हैं ।।२३५८ || कीतिदेवीका वर्णन उरिम्मि गोल- गिरिलो, केसरिणामे वहम्मि विव्वम्मि । दि कमल - भवणे, देवी किति हि दिखावा ।।२३५६ ।। :- नीलगिरिपर स्थित केसरी नामक दिव्य के मध्य में रहनेवाले कमल - भवनपर की ति नामसे विस्पात देवी स्थित है ।। २३५६। विवि देवीय समाथो, तोए सोहेब सब्द परिवारो । दस चावाणि तुंगा, णिश्वम लावण्य - संपुष्ना ११२३६०॥
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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