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________________ ६२६ ] तिलोपपाती [ गाया २३४५ - २३४९ प्र : उस देवारण्य में सुवर्ण रत्न एवं छाँदीसे निर्मित तथा वेदी, तोरण और ध्वजपटादिकोंसे मण्डित विसाल प्रासाद हैं ।। २३४४॥ ग्राधिक उपपत्ति मंदिरा', अहिंसेमपुरा य मेहूण' गिहाई कोडा - सासाओ सभा सालाओ जिस रिकेषु ।। २३४५ ।। - हैं ||२३४८|| अर्थ :- इन प्रासादों में उत्पत्ति, अभिषेकपुर, मैयुनग्रह, कौटन-शासा, समाशाला और जिन भवन स्थित हैं ।।२३४५ ।। . - avard signoreER च विदिसासु नेहा, ईसारिएबस्स अंग खाणं । विष्यंत श्यण दोवा, बहुविह-घुम्यंत भय - · - - अर्थ :- चारों विदिशाओं में ईशानेन्द्र के अंगरक्षक देवोंके प्रदीप्त रत्नदीपकों वाले और बहुत प्रकारको फहराती हुई ध्वजाओं के समूहोंसे सुशोभित गृह हैं ।। २३४६ ।। विखण-विसा-विभागे, तिप्परिमाणं पुराणि विबिहारिंग ताणमणीयाणं * पासादा परिम बिसाए ।।२३४७ ।। :-दक्षिण दिशा-भागमें तीनों पारिषददेवोंके विविध भवन और पश्चिम दिशामें सात अनीक देवोंके प्रासाद है ।।२३४७ ।। - एवं सब्वे देवा, तेसु कोति बहु रम्मेसु मंदिरेसु ईसाजिदस्स किब्बिस अभियोगाचं, सम्मोह-सुराण तत्भ विभागे । कंजप्पा अर्थ :--उसी दिशा में किल्विष, अभियोग्य, संमोहसुर और कन्दर्य देवोंके प्रभुत भवन · १.ज. प. उदा च. पुरा विविहाणं । ४. व. म. रु. ज. य उ सत्ता माय माला ||२३४६ ॥ सुरागं होंसि विवित्तानि भवरलाल ।।२३४६ ।। बोदेहि | परिवारा || २३४६ ॥ ए: - ईसानेन्द्र के परिवार स्वरूप ये सब देव उन रमणीक भवनोंमें बहुत प्रकारके विनोदोंसे कीड़ा करते हैं ।। २३४९ ।। २... जय. उ. मिमिक. म. प.
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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