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तिलोपपाती
[ गाया २३४५ - २३४९
प्र : उस देवारण्य में सुवर्ण रत्न एवं छाँदीसे निर्मित तथा वेदी, तोरण और ध्वजपटादिकोंसे मण्डित विसाल प्रासाद हैं ।। २३४४॥ ग्राधिक
उपपत्ति मंदिरा', अहिंसेमपुरा य मेहूण' गिहाई
कोडा - सासाओ सभा सालाओ जिस रिकेषु ।। २३४५ ।।
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हैं ||२३४८||
अर्थ :- इन प्रासादों में उत्पत्ति, अभिषेकपुर, मैयुनग्रह, कौटन-शासा, समाशाला और जिन भवन स्थित हैं ।।२३४५ ।।
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च
विदिसासु नेहा, ईसारिएबस्स अंग खाणं । विष्यंत श्यण दोवा, बहुविह-घुम्यंत भय
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अर्थ :- चारों विदिशाओं में ईशानेन्द्र के अंगरक्षक देवोंके प्रदीप्त रत्नदीपकों वाले और बहुत प्रकारको फहराती हुई ध्वजाओं के समूहोंसे सुशोभित गृह हैं ।। २३४६ ।।
विखण-विसा-विभागे, तिप्परिमाणं पुराणि विबिहारिंग ताणमणीयाणं * पासादा परिम
बिसाए ।।२३४७ ।। :-दक्षिण दिशा-भागमें तीनों पारिषददेवोंके विविध भवन और पश्चिम दिशामें सात अनीक देवोंके प्रासाद है ।।२३४७ ।।
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एवं सब्वे देवा, तेसु कोति बहु रम्मेसु मंदिरेसु ईसाजिदस्स
किब्बिस अभियोगाचं, सम्मोह-सुराण तत्भ विभागे ।
कंजप्पा
अर्थ :--उसी दिशा में किल्विष, अभियोग्य, संमोहसुर और कन्दर्य देवोंके प्रभुत भवन
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१.ज. प. उदा
च. पुरा विविहाणं । ४. व. म. रु. ज. य उ सत्ता माय
माला ||२३४६ ॥
सुरागं होंसि विवित्तानि भवरलाल ।।२३४६ ।।
बोदेहि |
परिवारा || २३४६ ॥
ए:
- ईसानेन्द्र के परिवार स्वरूप ये सब देव उन रमणीक भवनोंमें बहुत प्रकारके विनोदोंसे कीड़ा करते हैं ।। २३४९ ।।
२... जय. उ. मिमिक. म. प.