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गाषा : २३१५-२३१६
पउत्पो महाहियारो प:-दहा श्रेष्ठ राजा, अधिराज, महाराज भोर सूत्र-चमरोंसे युक्त प्रर्षमण्डलीक, महामण्डलीक एवं सकलमण्डलोक विराजमान रहते है ।।२३१४।।
। पार्यखण्डको प्ररूपणा समाप्त हुई।
म्लेम्डखण्ड एवं उनमें रहने वाले जोव -
णामेण मल्छखंडा, प्रबसेसा हॉसि पंच खंग है। upts ... बिह: अमर प्रोग्रामियागुणा ते ॥२३१५।।
पर्ष :-पोष पांच बण्ड नामसे म्लेच्छपण्ड हैं । उनमें स्थित जोव मिभ्यागुणोंसे युक्त होते हैं और बहुत प्रकारके भाव-कलङ्कसे ( पाप-परिणामों ) सहित होते हैं ।।२३१५।।
गाहल - पुलिय • बहर-किराय-पडवीन सिंघलादो।
मेच्छारण कुलेहि जुवा, भणिवा हे मेखलंग ति ॥२३१६॥
मर्म :-ये म्लेच्छाकाण्ड नाहल, पुलिद, चर्बर, किरात तथा सिंहलादिक म्लेच्छोंके कुलोंसे युक्त कहे गए है ॥२३१६।।
वृषभगिरिपोलावल-वक्मिणयो, 'बामगिरिबस्स पुष्य - दिमागे । रत्ता • रत्तोबाण, मम्झम्मि म मेच्छर - बहुमा ।।२३१७॥ चाकहर-माण-मयको, जाणा-सस्कोरण नाम - संचयो ।
अस्पि बसह ति सेलो, भरहनिवि • पसह-सारिन्यो ।।२३१८।।
म:-नीलाचलके दक्षिण भौर वक्षार पर्वतके पूर्व-दिग्भागमें रक्ता-रक्तोदाके मध्य सम्लेच्छावण्डके बहुमध्यभागमें चक्रधरोंके मानका मर्दन करनेवासा और नाना पक्रवतियों के नामोंसे व्याप्त भरतक्षेत्र सम्बन्धी वृषभगिरिके सदृश वृषभ नामक पर्वत है ।।२३१७-२३१८॥
शेष मंत्रोंका संक्षिप्त वर्णनएवं कच्छा • विजमो, बास-समासेहि पन्नियो एस्म । सेता विजयानं पलयमेवंविहं बाप ॥२३५९॥
१.प. ब, क, ज. प. ४. प्रागिरिदस्त । २.६... क. प. उ. लिया।