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________________ तिलोयपनाती [ गाथा : २३११-२३१४ वर्ष :-आर्यखण्डमें स्थित, प्रातिहार्योसे संयुक्त, पाच महाकल्याणक सहित, चौंतीस अतिशयोंसे सम्पन्न, सम्पूर्ण सुरासुरोंसे पूनित, नाना प्रकारके अक्षणों से परिपूर्ण, पतियोंसे नमस्कट परणवाले पोर तीनों लोकोंके अधिपति तीर्थकर परमदेव प्रसन्न हो ॥२३०६-२३१०॥ गणपरदेव एवं चातुर्वण्य संघअमर-पर-णमिव-वलगा, भन्य-प्रणावणा पसब-मणा । प्रट्ठ - विह - रिडि - जुता, गणहरदेवा ठिरा तस्ति ॥२३११॥ भ -जिनके चरणों में देव भोर मनुष्य नमस्कार करते है तथा जो प्रष्यजनोंको आनन्ददायक हैं और पाठ प्रकारको ऋबियोंसे युक्त है, ऐसे प्रसन्नचित्त गणघरदेव उस प्रार्यखममें स्पित रहते हैं ।।२३११॥ et : - RATई gratis औाल अमगार-बलि-मुली'-वरबि-सरकवली तवा तस्ति । बेदि चाउम्वणो, तस्सि संघो गुण - गणतो ॥२३१२॥ प:--उस पायंबण्डमें बनगार, केदली, मुनि, परमविप्राप्त-कृषि और श्रुतकेयसी तथा गुणसमूहसे मुक्त चासुदेण्यं संघ स्थित रहता है ।।२३१२।। बलदेव, मधंचक्रो एवं राजा प्रादिबलदेव - वासुदेवा, परिसन सत्य होति से सधे। मसोमण - ब • मच्छर • पट्ट - घोरयर - संगामा ॥२३१३।। :-वहाँपर बलदेव, वासुदेव पौर प्रतिमन ( प्रतितासुदेव ) होते हैं। ये सब परस्पर बाँधे हुए मत्सरभावसे चोरलर संग्राममें प्रवृत्त रहते है ॥२३१३॥ रायाषिराम - बलहा, तत्प विराति से महाराया। पत्त - चमरेहि वृत्ता, प्रय' महा - सबल - मंगलिया ॥२३१४।। । मन्जर-परूपमा समत्ता । ...बक.अ.म.न. मुरिणवरा। २....क.. २. पढ़।
SR No.090505
Book TitleTiloypannatti Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages866
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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