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गापा : २३०५-२३१. ] पउत्यो महाहियारों
[ ६१७ क्षेमा नगरी स्थित चक्रवर्तीएयरोए वकवट्टी, तीए बे?वि बिबिह-गुस-सानी । प्राविम • सहलग - जुवो, समचाउरस्संग - संगणो' ॥२३०५।। कुंजर-कर-पोर-'भुवो, दर-सेए पर संग : *
वो बिब मागाए, सोहम्मेण च मयगो' व्य ।।२३०६॥ घगदो' विष पाजं, धीरेण मारो र सोहति ।
जलहो विव प्रक्लोमो, पुह-पुह-विकिरिय-सत्ति-जबो' ॥२३०७॥
मर्ग :-उस नगरीमें अनेक गुणोंकी निस्वरूप चक्रवर्ती निवास करता है । वह मादिके वर्षभनाराच-संहनन सहित, समचतुरस्रस्प शरीर-संस्पानसे संयुक्त, हापोंके शुण्डादण्ड सदृश स्यूल भुजाओंसे शोभित, सूर्य सहमा उस्कृष्ट तेजके विस्तारसे परिपूर्ण. आशामें इन्द्र तुल्य, सुभगता, मानों कामदेव, दाममें कुवेर सहम, धर्य गुरगमें सुभेपर्वतके समान, समुद्रके सवरा अक्षोभ्य और पृषक-पृथक विक्रियाशक्तिसे युक्त पोभित होता है ।।२३०५-२३०७॥
पंच-सय - खाव • गो, सो बक्की पुण्य-कोरि-संखाक ।
दस • हि - भोगेहि जुबो, सम्माही विसास - मई ।।२३०८।।
म:-बह पक्रवर्ती पाचसो धनुष ऊँचा, पूर्वकोटि प्रमाण प्रायुवाला, इस प्रकारके भोगोंसे युक्त, सम्यग्दृष्टि और विकास (उदार) बुद्धि सम्पन्न होता है ।।२३०८॥
तीर्थकरप्रजाखंडम्मि छिदा, तिस्थयरा पारिहेर - संजुत्ता । पंच • महाकल्लाणा, चोत्तीसानिमय - संपण्णा ॥२३०६॥ सपल-सुरासर-महिया, भागाविह - सालणेहि संपुण्णा । बल्कहर - गमिव - चलणा, तिलोक - माहा पसीचंतु ।।२३१०।।
१.व. ब... ज. प. उ. ठाणा । २.१.... प. उ. मुग। ३.ब.स.क. प. य... रहिपर..............संपुष्पा । ५. ६.ब.क.प. उ. मयएम क. मय । १.....क.प. य..पणा पिंप। . . . . . . जुगा।